'दिल की मानें या
दिमाग की सुनें'.
(सदगुरु जग्गी वासुदेव)
दरअसल, मन का गहरा आयाम हृदय कहलाता है। लेकिन योग में गहरे भावात्मक मन को मनस कहा गया है। मनस, स्मृति का एक जटिल मिश्रण है, जो भावों को एक ख़ास रूप देता है। दिल और दिमाग अलग नहीं हैं पूरे एक हैं।
आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं, 'पहले तो हमें यह समझना होगा कि दिल और दिमाग कहते किसे हैं। हम आमतौर पर अपनी सोच का संबंध दिमाग से और भावों का संबंध दिल से जोड़ते हैं।
यदि हम पूरी सजगता और गंभीरता से इस पर गौर करें तो पाएंगे कि आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही महसूस करते हैं। पर यह भी सच है कि आप जैसा महसूस करते हैं, वैसा ही सोचते हैं। यही कारण है कि योग ने भाव व विचार को एक साथ मानसिक शरीर का अंग माना है।
आप जिसे मन कहते हैं, वह सोचने की प्रक्रिया या बुद्धि है। दरअसल इसके कई आयाम हैं, जिनमें से एक तार्किक आयाम है। दूसरा गहरा भावनात्मक पक्ष है। इस तार्किक आयाम को बुद्धि कहते हैं। मन का गहरा आयाम हृदय कहलाता है।
लेकिन योग में गहरे भावात्मक मन को मनस कहा गया है। मनस, स्मृति का एक जटिल मिश्रण है, जो भावों को एक ख़ास रूप देता है। तो आप जैसा सोचते या महसूस करते हैं, वे दोनों ही मन की गतिविधियाँ हैं।
भाव धीरे-धीरे बदलते हैं.
उदाहरण के मुझे लगता है कि आप बहुत अच्छे हैं, तो मेरे मन में आपके लिए मधुर भाव पैदा होंगे। अगर मुझे लगता है कि आप दुष्ट हैं, तो मेरे मन में आपके लिए बुरे विचार पैदा होंगे।
दूसरे शब्दों में कहें तो जो आप महसूस करते हैं, वही सोचते हैं, परंतु सोच और भावना आपके अनुभव में अलग दिखते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि विचार की अपनी स्पष्टता और गति है। भाव थोड़ा धीमा होता है।
यानी आप यदि अच्छे विचार सोचेंगे तो आपका मन और दिल एक भाव में सहमत होगा तो आप मन की ही सुनेंगे।
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