कविता-जब टूट चूका हो अंतर्मन.


कविता-जब टूट चूका हो अंतर्मन.

ब्राजीली कवियत्री "मार्था मेरिडोस" जिन्हें.
कविताओ के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था.
उनकी कविता अंग्रेजी भाषा में, जिसका हिंदी अनुवाद.

नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अन्तर्मन,
तब सुख के मिले समन्दर का
रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।

जब फसल सूख कर जल के बिन
तिनका -तिनका बन गिर जाये,
फिर होने वाली वर्षा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।

सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।

छोटी-छोटी खुशियों के क्षण
निकले जाते हैं रोज़ जहां,
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं ।।

मन कटुवाणी से आहत हो
भीतर तक छलनी हो जाये,
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

सुख-साधन चाहे जितने हों
पर काया रोगों का घर हो,
फिर उन अगनित सुविधाओं का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

1 टिप्पणी:

https://www.kavibhyankar.blogspot.com ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता अगर कॉपी पेस्ट की अनुमति हो तो फैसबुक पर सैयर करना चाहुंगा