ऋष्यमूक-पर्वत और बालि तथा सुग्रीव.
ऋष्यमूक पर्वत पर एक विशाल बानर रहता था, जिसका नाम ऋक्षराज था। इसी पर्वत पर रावण के सताए हुए अनेक ऋषि गण एक साथ समूह में मूक (मौन) होकर रावण का विरोध कर रहे थे।
रावण जब विश्व विजय के लिए निकला, तो उसने एक साथ अनेकों ऋषियों को एक पर्वत पर एकत्र देख कर पूछा कि इतने सारे महात्मा लोग यहाँ क्या कर रहे हैं? राक्षसों ने जबाव दिया- महाराज ! ये लोग आपके द्वारा सताए हुए ऋषि हैं और मूक (मौन) होकर आपका विरोध कर रहे हैं। रावण ने कहा कि इनकी इतनी हिम्मत? मार डालो इन सभी को। रावण की आज्ञा से राक्षसों ने सभी ऋषियों को मार डाला। उन्हीं के अस्थि अवशेषों से यह पहाड़ बन गया, जिससे इसका नाम ऋष्यमूक पर्वत पड़ गया।
बालि और सुग्रीव का जन्म.
वह ऋक्षराज नाम का बानर बड़ा ही शक्तिशाली था। अपने बल के घमंड में इधर उधर विचरण करता रहता था ।उस पर्वत के पास में एक बड़ा ही सुंदर तालाब था, लेकिन उस तालाब की यह विशेषता थी कि जो उसमें जो भी स्नान करता, वह सुंदर स्त्री बन जाता। ऋक्षराज को यह बात ज्ञात नहीं थी। मस्ती में एक दिन वह उस तालाब में कूद पड़ा और जैसे ही बाहर आया तो उसने देखा कि वह एक सुंदर षोडशी स्त्री के रूप में परिणित हो चुका है।
यह देख कर उसे बहुत ग्लानी हुई, परंतु वह क्या कर सकता था? इतने में देवराज इन्द्र की दृष्टि उस स्त्री पर पड़ी। देखते ही उनका तेज स्खलित हो गया। वह तेज उस स्त्री के बालों पर गिरा। उसी से बालि की उत्पत्ति हुई। कुछ समय पश्चात सूर्योदय होने पर सूर्य की दृष्टि भी उस सुन्दरी पर पड़ी, तो सूर्यदेव भी उसकी सुन्दरता पर मोहित हो गये। उनका तेज भी स्खलित हो गया, जो उस स्त्री की ग्रीवा पर पड़ा। उससे जिस पुत्र का जन्म हुआ, उसका नाम सुग्रीव पड़ा। क्योंकि ग्रीवा पर तेज गिरा था, इसीलिए वे सुग्रीव कहलाए।
दोनों ही सगे भाई थे। बड़ा भाई बालि इन्द्र का पुत्र और छोटा भाई सूर्य का पुत्र सुग्रीव था। बालों पर तेज गिरने से बालि और ग्रीवा पर तेज गिरने से सुग्रीव नाम पड़ा। दोनों का पालन पोषण उसी ऋक्षराज बानर से बनी हुई स्त्री ने किया और उसी ऋष्यमूक पर्वत को अपना निवास बनाया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें