ज्योतिष और
रोग.
कुंडली के ग्रह दर्शाते है कि जातक जीवन में किन रोगों से पीड़ित रह सकते है। किस ग्रह से क्या रोग सम्भव है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के वर्तमान जीवन में जो भी उसकी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या अध्यात्मिक परिस्थितियां या प्रवृत्ति है, वह उसके पूर्व जन्म के संचित कर्मों के आधार पर निर्धारित होती है। व्यक्ति की कुंडली में उसी प्रकार ग्रहों की स्थितियाँ या युतियाँ होती हैं। चूँकि प्रत्येक ग्रह व्यक्ति के शरीर में उपस्थित किसी न किसी तत्व का प्रतिनिधित्व भी करता है और कारक होता है अतः उस ग्रह की किसी विशेष भाव में उपस्थिति, युति या उसका बल व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार की शारीरिक, मानसिक व्याधि को जन्म देता है।
कैंसर
1. सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है।
2. कर्क लग्न में बृहस्पति कैंसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवें, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये तब व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है।
3. शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवें स्थान में राहु या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है।
4. छठे भाव का स्वामी लग्न, आठवें या दसवें में भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है।
5. किसी जातक की कुंडली में सूर्य यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है।
6. किसी जातक की कुंडली में यदि सूर्य कहीं भी पाप ग्रहों के साथ हो और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना रहती है।
7. कमजोर चंद्रमा पापग्रहों की राशी में छठे, आठवें या बारहवें हो और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तो अवश्य ही कैंसर होता है।
नेत्र रोग
1. लग्नेश यदि बुध अर्थात् 3-6 या मंगल 1-8 वीं राशी में स्थित हो तो आँखों में कोई न कोई रोग होने की प्रवल सम्भावना होती है।
2. अष्टमेश व लग्नेश छठे भाव में एक साथ हों तो बायीं आँख में विकार तय है।
3. शुक्र छठे या आठवें में हो तो दाई आँख में विकार संभव है।
4. यदि 10 वें और छठे भावों के स्वामी द्वितीयेश के साथ लग्न में स्थित हो जाये तो व्यक्ति जीवन में दृष्टि अवश्य खो देगा।
5. मंगल द्वादश भाव में हो तो बाएं और शनि द्वितीय भाव में हो तो दायें आँख में चोट लगने की प्रबल सम्भावना होती है।
6. त्रिकोण में पाप ग्रहों से दृष्ट सूर्य स्थित हो तो व्यक्ति को आँखों में रोग के कारण कम दिखाई देगा।
मूकता (गूंगापन)
1. द्वितीयेश यदि गुरु के साथ आठवें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति के गूंगा होने की प्रबल सम्भावना रहती है।
2. बुध और छठे घर का स्वामी लग्न में हो तो भी व्यक्ति गूंगा हो सकता है।
3. कर्क, वृष्चिक या मीन लग्नों में बुध कहीं भी और कमजोर चंद्रमा उसे देखे तो जातक को हकलाहट की समस्या हो सकती है।
4. कोई भी लग्न हो परन्तु शुक्र यदि द्वितीय भाव में क्रूर ग्रह से युक्त हो तो व्यक्ति काना या नेत्र विकार युक्त अथवा तुतलाकर बोलने वाला होता है।
5. द्वितीयेश और अष्टमेश की युति हो या द्वितीयेश पाप पीड़ित हो और अष्टमेश उसे देखे तो हकलाहट या गूंगेपन की पूरी सम्भावना रहेगी।
क्षयरोग (टी बी)
1. राहु छठे, लग्न से केंद्र में शनि और लग्नाधिपति अष्टम में हो तो क्षयरोग की प्रबल संभावना होती है।
2. चंद्रमा के घर में यदि बुध बैठा हो तो क्षय रोग या कुष्ठ रोग या दोनों की प्रबल संभावना होती है।
3. मंगल और शनि दोनों की दृष्टि यदि लग्न पर हो तो श्वास या कषय की बीमारी होती ही है।
4. सिंह या कर्क राशी में सूर्य और चंद्रमा की युति क्षय रोग देने वाली होती है।
5. कर्क, मकर, कुम्भ या मीन राशी में चंद्रमा हो और गुरु अष्टम में हो और उसे पाप ग्रह भी देखते हों तो क्षय रोग के कारण मृत्यु हो सकती है।
पागलपन (मतिभ्रम)
1. लग्न और सातवें भाव में क्रमशः गुरु और मंगल स्थित हों तो व्यक्ति मति भ्रम का शिकार हो सकता है।
2. लग्न में शनि और 9, 5 या 7 वे भाव से मंगल का सम्बन्ध हो तो व्यक्ति मतिभ्रम का शिकार होकर धीरे-धीरे पागल हो जायेगा।
3. 12 वें भाव में शनि और कमजोर चंद्रमा की युति भी व्यक्ति को मतिभ्रम का शिकार बना देती है।
4. शुक्र और गुरु की युति हो व्यक्ति मतिभ्रम का शिकार होगा ही और यदि लग्न पर राहु या शनि के साथ कमजोर चंद्रमा का प्रभाव भी हो जाये तो पागल हो जायेगा।
रक्तचाप
1. चंद्रमा के क्षेत्र में मंगल बैठा हो।
2. शनि चतुर्थ में हो तो भी उच्च रक्तचाप के साथ व्यक्ति तेज दिल का दौरा पड़ सकता है। प्रथम भाव में हो और चंद्रमा भी पीड़ित हो तो व्यक्ति तीव्र हृदय घात होगा।
3. कोई भी लग्न हो यदि शनि या राहु चतुर्थ भाव में हो और चंद्रमा भी पीड़ित हो तो व्यक्ति तीव्र हृदय घात होगा।
4. किसी भी लग्न में द्वादशेष $ चंद्रमा $ शुक्र की युति एक साथ दुह्स्थानों में हो तो व्यक्ति को तेज दिल का दौरा के साथ दुर्घटना का भी प्रबल योग होता है।
5. किसी भी लग्न में यदि चतुर्थेश यदि अष्टम में हो तो भी जातक तीव्र रक्तचाप की बीमारी होगी।
कुष्ठ रोग
1. शनि, मंगल और चंद्रमा ये तीनों यदि मेष या वृषभ राषि में हों तो सफेद कुष्ठ की प्रबल सम्भावना होती है।
2. चंद्रमा यदि राहु के साथ लग्न में हो तो भी कुष्ठ रोग होता है।
3. जल राशि में गया हुआ चंद्रमा यदि शुक्र से युक्त हो तो भी सफेद कुष्ठ की पूरी सम्भावना होगी।
4. मेष राशी में बुध हो और दशम में चंद्रमा, शनि और मंगल की युति हो तो भी कुष्ठ रोग होगा।
5. बुध, चंद्रमा और लग्न का स्वामी यदि राहु या केतु से युत हों तो कुष्ठ रोग होता है।
पीलिया (पांडू रोग)
1. लग्न में सूर्य, मंगल और शनि की युति अन्य शुभ ग्रहों की संगत या दृष्टि होने के बावजूद पीलिया रोग जीवन में हो ही जाता है।
2. अष्टम में गया हुआ बृहस्पति और नीच गत मंगल भी पीलिया रोग दे देता है।
3. अष्टम में राहु और गुरु की युति भी लीवर सम्बन्धी रोग दे देती है।
नशा (व्यसन)
1. बारहवें पाप ग्रह हो।
2. लग्न में मकर का गुरु।
3. लग्नेश निर्बल हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो।
4. लग्न का स्वामी नीच राशि में अथवा अपने शत्रु राशि में स्थित हो।
5. बारहवें भाव का स्वामी नीच राशी गत हो।
6. राहु की दशा- अंतर दशा भी जातक को व्यसन की ओर अग्रसर करती है।
अन्य रोग एवं ग्रह
1. लग्नेश पाप पीड़ित हो या लग्न में कमजोर चंद्रमा हो तो व्यक्ति आजीवन रोगी रहेगा।
2. लग्न अथवा अष्टम का गुरु मोटापा का कारक होता है यदि गुरु अष्टम में है तो मोटापा के साथ साथ थाइरायड की समस्या अवश्य दे देगा।
3. अष्टम का राहु, शुक्र या शनि वात रोग अवश्य देते है।
4. पाप पीड़ित बुध पित्त की बीमारी अवश्य दे देगा।
5. मकर और कुम्भ लग्न के जातको को वात रोग अवश्य होता है यदि शनि पीड़ित हो तो आर्थराइटिस होने की पूरी सम्भावना रहेगी।
6. लग्नेश निर्बल हो चंद्रमा तथा सूर्य भी निर्बल और पाप ग्रसित हों तो व्यक्ति की प्रवृत्ति आत्महत्या करने की होती है या व्यक्ति अवसाद में जा सकता है।
7. चाहे कोई भी लग्न हो अष्टम में शनि और चंद्रमा के युति व्यक्ति को शत्रु कृत कर्म और प्रेत बाधा से मृत्यु देने में समर्थ है।
विशेष
1. ऊपर दिए गए रोग के और भी योग होते हैं परन्तु यहाँ केवल मुख्य योग ही दिए गए हैं, वह भी जानकारी मात्र के लिए।
2. प्रत्येक योग के कुछ परिहार भी कुंडली में होते हैं अतः केवल यहाँ लिखे योग को ही अंतिम मानकर किसी परिणाम पर न पहुँचे, अपितु अपनी कुंडली की जाँच करा कर ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचे।
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