कारक पुरुष.

कारकपुरुष.
“कारक-पुरुष” उन्हें कहते हैं, जो प्रकाश मार्ग से, भिन्न - भिन्न देवताओं द्वारा, क्रम से अग्रसर [गीता के श्लोक ८/२४] होते हुए अंत में भगवान के धाम को पहुंचते हैं. उस धाम का कभी नाश नहीं होता, वहाँ किसी प्रकार का दु:ख और शोक नहीं है. इसी धाम को श्रीविष्णु के उपासक ‘वैकुण्ठ’, श्रीकृष्ण के उपासक ‘गोलोक’ और श्रीराम के उपासक ‘साकेत’ लोक कहते हैं. इस लोक में पहुंचे हुए महापुरुष पुन: लौटकर मृत्यु - लोक में नहीं आते. परन्तु इनमें से, भगवान की प्रेरणा से अथवा अपनी इच्छा से केवल जगत का हित करने के लिए संसार में आते हैं, तो वे "कारक-पुरुष" कहलाते हैं. ऐसे लोगों के दर्शन, स्पर्श, भाषण, और चिंतन से भी साधक भक्तों का उद्धार हो सकता है. श्री वशिष्ठजी और वेद-व्यासजी आदि ऐसे ही महापुरुष थे. ये केवल बंधन में पड़े हुए जीवों को मुक्त करने के लिए ही प्रकट होते हैं. 

अवतार और कारक पुरुष में यही अंतर है कि अवतार तो कभी जीव भाव को प्राप्त हुए ही नहीं और कारक पुरुष कभी जीव भाव को प्राप्त थे. परन्तु भगवत कृपा से अपने पुरुषार्थ द्वारा, क्रम-मुक्ति से वे अंत में परम धाम को प्राप्त हुए. वर्तमान में ऐसे पुरुष तो देखने में नहीं आते पर जीवन-मुक्त महात्मा अवश्य मिल सकते हैं. |जो इसी देह में सत्य, नित्य, आनंद-बोध स्वरूप में स्थित हो जाते हैं, जिनके सारे कर्म ज्ञानाग्नि में भस्म हो चुके हैं, और जिनकी दृष्टि में एक अनंत और असीम परमात्मा की सत्ता के सिवाय जगत की सत्ता का सर्वथा अभाव हो जाता है. ऐसे महापुरुष "जीवन-मुक्त " कहलाते हैं. इसी का नाम सद्यो-मुक्ति .है तथा क्रम से परम धाम पहुंचने वाले, चार प्रकार [सामीप्य, सारूप्य, सालोक्य और सायुज्य] की मुक्ति को प्राप्त होते हैं. श्री शुकदेवजी और राजा जनक आदि जीवन-मुक्त महात्माओं के उदाहरण हैं.

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