प्रकृति के विलक्षण अंकन.


प्रकृति के विलक्षण अंकन.

रेगिस्तानों में जब तेज हवा चलती है, तब वह टीलों को एक जगह से दूसरी जगह उड़ा ले जाती है। समतल को ऊबड़ खाबड़ और ऊबड़ खाबड़ को समतल कर देती है। पर यह उथल पुथल होते बेसिलसिले ही हैं। उसे प्रकृति का साधारण खेल भी माना जाता है और दूसरी ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।

पर आश्चर्य तब होता है जब हवाएं किसी विशेष क्रम से चलती हैं और बालू पर अपने विशेष प्रकार के निशान बनाती चली जाती हैं। नात्का, पेरू आदि के रेगिस्तानों में यह कौतूहल विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता है। उन क्षेत्रों में जब तेज हवाएं चलती हैं तब वे चित्र विचित्र ढंग से अपनी गति बदलती हैं। कभी सीधी चलती हैं। कभी टेड़ी तिरछी कभी लहराती हुई। बालू के कण उनसे प्रभावित होते हैं। फलतः मीलों लम्बे घेरे में भूमि पर ऐसी रेखाएं बन जाती हैं मानो किसी गणितज्ञ ने रुचिपूर्वक नाप तौलकर ज्यामिती के आधार पर उन्हें बनाया हो और इस समूचे क्षेत्र को रहस्यमय कलाकारिता की पृष्ठभूमि में सजाया गया हो। आकृतियाँ इतनी अजीबोगरीब इतनी आकर्षक होती हैं कि दर्शक का मन मोह लेती हैं और प्रकृति की इस कलाकारिता को वह स्तब्ध होकर देखता रह जाता है। इस क्षेत्र में कितने ही दर्शक दूर देशों से इसी निमित्त आते हैं कि प्रकृति विनिर्मित इस कलात्मक संरचना को देखें और दृश्यों की विभिन्नता का आनन्द लूटें।

विगत आधी शताब्दी से इन कृतियों के रहस्य खोजे जा रहे हैं और किसी निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयत्न किया जा रहा है पर अभी तक कुछ तुक बैठा नहीं है। रहस्य तब और भी गहरा हो जाता है जब बालू और कंकड़ों से मिलकर बंदर, रीछ, बैल, भेड़ जैसे छोटे और गुलाई लिए हुए जानवरों की अनुकृतियाँ बनकर खड़ी हो जाती हैं। दूर से फोटो लेने पर वे जीव जन्तु ही प्रतीत होते हैं। पर भेद तब खुलता है जब उन्हें निकट जाकर देखा जाता है।

इस अजूबे के शोधकर्ता जर्मन वैज्ञानिक मारिया रीच ने इसी प्रयोजन की तह तक पहुँचने के लिए उनमें अपना डेरा डाला है और यह जानने का प्रयत्न किया है कि आखिर होता ऐसा क्यों है।

इन विचित्र रेखाओं का एक विशेष नामकरण किया गया है “नाज्का” इनके साथ कौतूहल ही नहीं वरन् ज्योतिष विज्ञान की भी कितनी ही तुकों का समावेश होता है। एक क्षेत्र में किसी विशेष मास में निश्चित तारीख को नियत रेखाएँ बनती हैं। जिन्हें उन दिनों के कार्यक्रम तथा भविष्य की जन्म कुण्डली कहा जा सकता है। इस आधार पर यह सोचा गया है कि यह अंकन विश्व के विभिन्न समूह क्षेत्र से संबन्धित भूतकालीन एवं भावी घटनाक्रमों को अंकन करते हैं जिसका रहस्य पढ़ लिये जाने पर यह जाना जा सकेगा कि प्रकृति अपने ढंग से अपनी भाषा में अपनी कलम से कुछ विचित्र लेखन करती है। पढ़े लिखों की तरह मनुष्यों से कहती है कि “क्या तुम इस अविज्ञात का अर्थ बता सकने जितना पढ़ लिख गये हो?”

संसार में अन्यत्र भी ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें धरती की पट्टी पर बहुत कुछ रहस्यमय लिखा है। मिस्री रेगिस्तान में कई जगह हंसने रोने या गाने जैसी आवाजें बालू में से निकलती हैं। पर उनकी गतिविधियाँ तीव्र होना वायुवेग के ऊपर निर्भर रहता है।

नाज्का रेखाएँ 4 से 18 इंच तक ऊँची उठी हुई देखी गई हैं और उनसे बने हुए खिलौनों की ऊँचाई 90 फुट से लेकर 400 फुट तक ऊँची देखी गई है।

वाशिंगटन विश्व विद्यालय एवं ब्रिटेन के खगोल शास्त्रियों ने उस क्षेत्र में पाई जाने वाली चट्टानों पर देखे गये अंकनों में पृथ्वी का आदिम काल से अद्यावधि घटित हुए घटनाक्रम का विवरण तैयार करने का प्रयत्न आरम्भ किया है।

कैसी विचित्र है प्रकृति की रहस्यमयी भाषा और लेखनी! कौन समझ पायेगा उसके पग-पग पर बिखरे चित्र विचित्र रहस्यों को।

(अखंड ज्योति 8/ 1986)


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