भवन निर्माण हेतु वास्तु टिप्स.
सीढियाँ
सीढियाँ बनाते समय घुमाव सदा बाई से दाई ओर होना चाहिये! सीढियों का द्वार पूर्व या दक्षिण दिशा में हो! सीढिया भवन के पीछे दक्षिण व् पशचिम भाग के दाई ओर हो तो शुभ! घुमाव चाहे कितने ही हों सीढिया हमेशा बाएं से दाये ओर मुडनी चाहिये! सीढियां हमेशा विषम संख्या में हों! सीढ़ियों की संख्या में 3 से भाग देने पर 2 शेष रहे अति उत्तम है! 5-11-17-23-और 25! सीढियों के नीचे व् ऊपर द्वार रखने चाहिये!
रसोई का निर्माण
अग्नि के लिए दक्षिण -पूर्व (आग्नेय) दिशा शुभ होती है! इस का सब से बड़ा कारण यह है कि इस दिशा में सूर्य रश्मियां व् शुद्ध वायु अधिक मिलती हैं! इस से रसोई घर में रखे खाद्य पदार्थ शुद्ध रहते हैं! और सूर्य ताप के कारण हानिकारक जीवाणु व् कीटाणु भी नष्ट हो जाते है!
दक्षिण –पश्चिम भाग
इस भाग में भवन को ऊँचा बनाया जाता है! इस दिशा में दीवारे भी मोटी होनी चाहिये! सीढ़ी आदि का भार भी इस ओर रखा जाता है! इस ओर भारी सामान भी रखा जाता है! पृथ्वी जब सूर्य की परिक्रमा दक्षिण दिशा में करती है, तो वह एक विशेष कोणीय सिथति में रहती है, इसलिये अधिक भार से संतुलन रहता है! इससे गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्मी का आभास किया जाता है!
भूमि सहित दिशा के उन्नत व् अवनत होने के फल
1-पूर्व- पुत्र नाश, सर्व बुद्धि कारक !
2-आग्नेय - सुख व् धन लाभ, अग्नि भय !
3-दक्षिण- सवास्थ,धन,लम्बी आयु मृत्यु व् शोक
4-दक्षिण-पूर्व- व्यापार में धन वृद्धि, गृह और धन नाश !
5-पश्चिम- वंश वृद्धि अपयश व् पुत्र नाश
6- उतर-पूर्व धनहानि, भड़कीला स्वाभाव !
7-उत्तर- सुख व् दीर्घायु कारक, धन लाभ कारक!
8-ईशान -कष्ट कारी, भय व् क्लेश, सुख-सम्पति कारक!
व्यापार वाला स्थान
दूकान या आफिस में उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा को खाली रखें! इसे दक्षिण या पश्चिम दिशा में भारी सामान रखें! अपना मुख उत्तर-पूर्व की ओर रखें! ऐसा करने से बहुत लाभ होगा!
(जय इन्दर मलिक
ज्योतिषाचार्य)
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