कविता- जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद.


जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद.

(शिवमंगल सिंह 'सुमन')


जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
 उस-उस राही को धन्यवाद।

जीवन अस्थिर अनजाने ही,
 हो जाता पथ पर मेल कहीं,

सीमित पग डगलम्बी मंज़िल
तय कर लेना कुछ खेल नहीं।

दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते
सम्मुख चलता पथ का प्रसाद --

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
 उस-उस राही को धन्यवाद।

साँसों पर अवलम्बित काया
जब चलते-चलते चूर हुई,

दो स्नेह-शब्द मिल गये
मिली नव स्फूर्तिथकावट दूर हुई।

पथ के पहचाने छूट गये
पर साथ-साथ चल रही याद --

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाये
उनसे कब सूनी हुई डगर?

मैं भी न चलूँ यदि तो क्या
राही मर लेकिन राह अमर।

इस पथ पर वे ही चलते हैं
जो चलने का पा गये स्वाद --

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि 
न मिला होता मुझको आकुल अंतर?

कैसे चल पाता यदि मिलते
चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर

आभारी हूँ मैं उन सबका
दे गये व्यथा का जो प्रसाद --

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।

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