देवराज -इंद्र और महादेव.


देवराज इंद्रऔरमहादेव.

एक बार देवराज इंद्र, देवगुरू बृहस्पति के साथ भगवान शिव के दर्शन को कैलाश गए. महादेव ने दोनों की परीक्षा लेनी चाही, इसलिए रूप बदलकर अवधूत बन गए. उनके शरीर पर कोई वस्त्र न था. उनका शरीर जलती हुई अग्नि के समान धधक रहा था और अत्यंत भयंकर नजर आते थे. अवधूत दोनों के रास्ते में खड़े हो गए. इंद्र ने एक विचित्र पुरुष को रास्ते में खड़े देखा तो चौंके. इंद्र को देवराज होने का घमंड तो पूर्व से ही था. उन्होंने उस भयंकर पुरुष से पूछा तुम कौन हो? भगवान शिव अभी कैलाश पर विराज रहे हैं या कहीं भ्रमण पर हैं. मैं उनके दर्शन के लिए आया हूं.


इंद्र ने कई प्रश्न किए लेकिन वह पुरुष योगियों के समान मौनधारण किये रहे. इंद्र को लगा कि एक साधारण प्राणी उनका अपमान कर रहा है. उनके मन में देवराज होने का अहंकार उपजा जो क्रोध में बदल गया.


इंद्र ने कहा मेरे बारबार अनुरोध करने पर भी तू जबाब न देकर मेरा अपमान कर रहा है. मैं तुझे अभी दंड देता हूं. ऐसा कहकर इंद्र ने वज्र उठा लिया. भगवान शिव ने वज्र को उसी समय स्तंभित यानी जड़ कर दिया. इंद्र की बांह अकड़ गई. भगवान अवधूत क्रोध से लाल हो गए. बृहस्पति उनके चेहरे पर आई क्रोध की ज्वाला को देखकर समझ गए कि ऐसा प्रचंड़ स्वरूप महादेव के अतिरिक्त किसी का नहीं हो सकता.


बृहस्पति शिवस्तुति गाने लगे. उन्होंने इंद्र को भी महादेव के चरणों में लिटा दिया और बोले प्रभु ! इंद्र आपके चरणों में पड़े हैं, आपके शरणागत हैं. आपके ललाट से प्रकट अग्नि इन्हें जलाने को बढ़ रही है. हम शरणागतों की रक्षा करें. बृहस्पति ने विनती करने लगे. प्रभु ! भक्तों पर आपकी सदा कृपा बरसती है. आप भक्त वत्सल और सर्व-समर्थ हैं. आप इस तेज को कहीं और स्थान दे दीजिए ताकि इंद्र के प्राणों की रक्षा हो.


भगवान रूद्र ने कहा बृहस्पति मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं. इंद्र को जीवनदान देने के कारण तुम्हारा एक नाम जीव भी होगा. मेरे तीसरे नेत्र से प्रकट इस अग्नि का ताप देवता सहन नहीं कर सकते. इसलिए मैं इसको बहुत दूर त्याग करूँगा.


महादेव ने उस तेज को हाथ में धारण कर समुद्र में फेंक दिया. वहां फेंके जाते ही भगवान शिव का वह तेज तत्काल एक बालक के रूप में परिवर्तित हो गया. सिंधु से उदभव होने के कारण उसका नाम सिन्धुपुत्र जलंधर प्रसिद्ध हुआ.


जलंधर जिसका नाम शंखचूड़ भी हुआ, शिव के तेज से उत्पन्न हुआ था, इस कारण परम शक्तियों से संपन्न था. वह देवों से भी ज्यादा शक्तिवान था. वह उस तेज से पैदा हुआ था, जो इंद्र को समाप्त करने वाला था इसलिए असुरों ने उसे अपना राजा बनाया. अवधूत रूप में यह लीला करने के बाद महादेव अंतर्धान हो गए. इंद्र के गर्व का भंजन भी हुआ किन्तु भगवान शिव के दर्शन भी हो गए.

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