पश्चाताप?
जब भिखारी लोग भिक्षा मंगाने जाते हैं, तो घर से थोड़ा सा अपनी झोली में डाल कर निकलते हैं, यह स्वाभाविक और जरूरी है। झोली में कुछ पड़ा हो तो लोग दे देते हैं, नहीं तो देते भी नहीं हैं। झोली में कुछ पड़ा हो तो वह देखकर जरा संकोच आता है कि दूसरों ने दे दिया है, तो हम भी दे देना चाहिए। मंदिर में पुजारी जब आरती के बाद पैसे के लिए थाली फिराता है तो उसमें कुछ पैसे डाल रखता है, क्योंकि अगर थाली खाली हो तो कोई भी पैसा भी न डालेगा। लोग सोचेंगे, किसी ने भी नहीं डाला तो हम कोई बुध्दू हैं, जो पैसा डाले! अगर और भी बुध्दू बन चुके हैं, कुछ पैसे पड़े हैं, तो फिर ऐसा लगता है कि अब न डालें तो कंजूसी मालूम होगी और एकाध पैसा डाल देते हैं। कुछ लोग तो खोटे पैसे लेकर मंदिर जाते हैं। छोटी से छोटी चीज़ भी भगवान् से मांगते हैं। यह स्वाभाविक मनोविज्ञान हैं।
भिखारी भी निकला था, थोड़े से पैसे डाल कर— थोड़े चने के दाने, थोड़े गेहूं थोड़े चावल और राह पर आया ही था कि देखा, राजा का रथ आ रहा है, धूल उड़ाता। सुबह सूरज निकला है और उसका स्वर्ण—रथ चमक रहा है। वह तो बड़ा गदगद हो गया। उसने सोचा कि ऐसा कभी सौभाग्य नहीं मिला था मझे! क्योंकि राजा के महल में तो कभी मुझे प्रवेश ही नही मिलता था, भिक्षा मांगने का सवाल ही न था। आज राजा राह पर मिल गया है, तो खडा हो जाऊंगा बीच में झोली फैला कर, धन्यभाग हैं! कुछ न कुछ नहीं बहुत कुछ आज जरूर मिलने बाला है।
और तभी रथ आया, रुका भी। रुका तो भिखारी घबड़ाया। कभी राजा के साथ मुलाकात नहीं हुई थी। राजा, रथ से नीचे उतरा तो भिखारी बिलकुल कांप गया और इसके पहले कि भिखारी होश जुटा पाता, और अपनी झोली फैला पाता, राजा ने अपनी झोली उसके सामने फैला दी और कहा- ' क्षमा करो जी, ज्योतिषियों ने कहा है कि अगर मैं भिक्षा मांगू तो राज्य बच सकता है, अन्यथा राज्य पर बड़ा संकट आ रहा है। ज्योतिषियों की सलाह है, आज सुबह मैं रथ पर निकलूं और जो आदमी पहले मिले, उससे भिक्षा मांग लूं। क्षमा करो, माना कि तुम भिखारी हो और तुम्हें देने में बड़ी कठिनाई होगी, लेकिन अब कोई उपाय नहीं है, राज्य को बचाने का सवाल है। कुछ न कुछ दे दो, इनकार मत कर देना।
अब तो विकट समस्या आन कड़ी हुई, भिखारी बड़ा घबड़ाया। कभी उसने दिया तो था ही नहीं, मांगा ही मांगा था। देने की कोई आदत ही न थी, उसे याद ही नहीं था कि कभी उसने कुछ दिया हो।
अब जरा सोचकर, उसका संकट देखो। परमात्मा अगर झोली फैला कर हमारे सामने खड़ा हो जाए तब? हमनें तो परमात्मा से मांगा ही मांगा है। अब तक जो भी प्रार्थना की हैं, सब मांगों से भरी थीं। हमने देने के लिए कभी प्रयास ही नहीं किया? कभी मंदिर जाकर यह भी नहीं कहा कि प्रभु, मैं अपने को देना चाहता हूं तुम ले लो। मुझ पर कृपा करना और मुझे स्वीकार कर लो। हम देने कभी गए ही नहीं, सिर्फ मांगने गए। भिखारी की तरह।
अब क्या हुआ क़ि वह भिखारी बहुत घबड़ा गया। इंकार भी न कर सका क्योंकि राज्य पर संकट है और राजा सामने खड़ा है। कुछ नहीं देते तो राजा नाराज न हो जाये और राजा अगर नाराज हो जाए... फिर?
उसने झोली में हाथ डाला। हाथ डालता है, मुट्ठी भरकेदेने के लिए, लेकिन मुट्ठी भरने की आदत ही नहीं थी। मजबूरी में एक चाँवल का दाना निकाल कर, उसने राजा की झोली में डाल दिया।
राजा ने झोली बंद की, बैठा रथ पर और चला गया। धूल उड़ती रह गई। तब उसे होश आया कि अरे, *मैं तो मांगना ही भूल गया;* यह तो उलटा ही हो गया!
बहुत दुखी हुआ।
उस दिन खूब भीख मिली, क्योंकि जो देता है, वह खूब पाता भी है।
हालांकि उसने बहुत कुछ नहीं दिया था, मगर फिर भी दिया तो, था ही। भिखमंगे के लिए उतना ही बहुत था। उस दिन खूब भीख मिली; लेकिन फिर भी वहुत उदास था। एक दाना तो कम था। लाख मिल जाए, इससे क्या फर्क पड़ता है, आखिर एक दाना तो कम ही रहेगा! और यह भी कैसा दुर्भाग्य का क्षण कि राजा के साथ मुलाकात हुई, तो मिलने की जगह उलटा देना पड़ा।
बड़ी पीड़ा थी। बड़े बोझ से भरा था। झोला बहुत भर गया था उसका, लेकिन वह खुशी नहीं थी। वह घर लौटा। पत्नी दौड़ी। ऐसा झोला कभी भर कर नहीं आया था। पत्नी बड़ी खुश हो गई। और उसने कहा- 'धन्यभाग, आज बहुत कुछ मिला है।’ उसने कहा : 'छोड़ पागल, तुझे पता नहीं आज क्या गंवाया है! यह कुछ भी नहीं है। एक तो अपने पास का एक दाना गया और इतना ही नहीं, जो मिलना था वह तो मिल ही नहीं पाया। अरे आज राजा के साथ मिलन हो गया और कुछ माग भी नहीं पाया। आज जैसा दुर्भाग्य का क्षण मेरे जीवन में कभी था ही नहीं।’
बड़ी उदासी से उसने झोली उलटाई और तब वह छाती पीट कर रोने लगा, क्योंकि उस झोली में उसने देखा कि एक चावल का दाना सोने का हो गया था।
तब वह छाती पीट कर रोने लगा की अरे राम मैंने सब कुछ क्यों नहीं दे दिया, वह सब भी सोने का हो जाता।
देने से सोने का होता है और मांगने से तो सोना भी मिट्टी हो जाता है। देने से मिट्टी भी सोना हो जाती है इसलिए तो शास्त्र दान की इतनी महिमा गाते हैं। छोटी—मोटी चीजें देने से काम न चलेगा, स्वयं को देना पड़ेगा, क्योंकि छोटी—मोटी चीजें तो मौत छीन लेगी, उनको देकर कोई परमात्मा पर आभार नहीं करते। जो मौत न छीन सके, वही देने की तैयारी हो, तो परमात्मा अभी मिल जाए।
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