छाया ऋण चुकाएँ, वरना ... -


छाया ऋण चुकाएँ, वरना ... -

हर जीवात्मा किसी न किसी ऋण से बंधी हुई है तभी तो उसका अवतरण हुआ है। धरा पर जन्म का मूल कारण ऋणानुबंध है और जब दो पक्षों का ऋण चुक जाता है तब संबंध अपने आप समाप्त हो जाते हैं।

यह स्थिति जड़-चेतन सभी तत्वों पर समान रूप से लागू होती है। मातृ ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, दैव ऋण, मातृृ भूमि ऋण आदि कई प्रकार के ऋण हैं जिन्हें चुकाये बगैर हमारी गति-मुक्ति और आनंद की प्राप्ति संभव नहीं है।

पहले के वर्षों में हम सभी लोग प्रकृतिपूजक रहे हैं, पंच तत्वों की उपासना करते रहे हैं और प्रकृति के प्रति पूज्य भाव को बनाए रखते हुए संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति गंभीर रहे हैं। लेकिन अब हमारे भीतर से प्रकृति के प्रति पूज्य भाव समाप्त होते जा रहे हैं और इसका स्थान ले लिया है शोषण भाव ने।

हम प्रकृति का अपने उपयोग के लिए आदर-सम्मानपूर्वक दोहन करते रहें वहाँ तक तो सब कुछ ठीक-ठाक है लेकिन अब हमारी संवेदनाएं समाप्त हो गई हैं, प्रकृति के प्रति आदर भाव समाप्त होकर शोषण का भाव उछालें मार रहा है।

इन सबका परिणाम यह हो रहा है कि प्रकृति और परमेश्वर सब हमसे नाराज हो गए हैं। हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं की जो भयावह तस्वीर हमने देखी है उससे भी हमने सबक नहीं लिया है। यह तो केवल ट्रेलर ही है, आगे क्या होगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। केवल इतना कहा जा सकता है कि प्रकृति हम पर कुपित है और वह कुछ भी सबक सिखाने के लिए अब हर पल उतावली हो उठी है।

पंच तत्वों के प्रति हमारा पुरातन भाव गायब हो गया है। असल में हमारे भीतर अब उतना तत्व ज्ञान रहा ही नहीं कि तत्वों की महत्ता को समझ सकें। सभी प्रकार के ऋणों में अब छाया ऋण भी शामिल हो गया है। जो-जो लोग छाया चाहते हैं, अपने वाहनों की पार्किंग के लिए नैसर्गिक छायादार स्थलों का उपयोग करते हैं और जो लोग अब तक पेड़-पौधों से किसी न किसी प्रकार की छाया को प्राप्त कर चुके हैं उन सभी पर छाया ऋण है। ये सारे के सारे छाया ऋण के भार से दबे हुए हैं।

या तो यह तय कर लें कि जिन लोगों ने अपने जीवन में एक पेड़-पौधा तक नहीं लगाया है वे किसी भी प्रकार से दरख्तों की छाया में खड़े रहने, बैठने या सुस्ताने अथवा अपने वाहनों की पार्किंग का उपयोग न करें ताकि छाया ऋण से मुक्त रह सकें और छाया पाने से चढ़ा हुआ कर्ज उतारने की नौबत नहीं आए।

जो लोग अपने जीवन में किसी न किसी प्रकार से वृक्षों की छाया का सुख प्राप्त कर चुके हैं उन सभी को चाहिए कि छाया का ऋण उतारने के लिए कम से कम एक पेड़ अवश्य लगाएं अन्यथा मौत के बाद भी यह ऋण चुकाना ही पड़ेगा।

हम सभी स्थानों पर छाया तलाशने में पीछे नहीं रहते, चाहे खुद को धूप से बचाना हो अथवा अपने वाहनों को। कहावत भी है कि बहुत से लोग हैं जो अपना घोड़ा पहले छाँव में बाँध लेने के आदी होते हैं लेकिन दूसरों के लिए छाँव की कभी परवाह नहीं करते।

जो लोग छाया का सुख प्राप्त कर रहे हैं, अपने तथा अपने वाहनों की पार्किंग के लिए छाया तलाशने के आदी हैं उन सभी का पहला कत्र्तव्य है कि जब भी बारिश के दिन आएं, कम से कम उतने पौधे जरूर लगाएं जितने वर्ष की आयु है, तभी वे छाया ऋण से मुक्त हो पाएंगे।

छाया ऋण नहीं चुकाने वालों पर पंच तत्व भी कुपित रहते हैं क्योंकि सभी तत्वों का परस्पर संबंध है। आज इस ऋण को चुकाने के प्रति हम लापरवाह रहे तो आने वाले समय में सारे पेड़-पौधे समाप्त हो जाएंगे और तब सीमेंट-कंक्रीट के जंगलों के सिवा कुछ न बचेगा। न हरियाली रहेगी, न छाया, और न ठण्डी हवाएँ। आने वाली पीढ़ियां भी हमें कोसती रहेंगी वो अलग।

इसलिए अब तक जो लापरवाही हो चुकी, उसे भूल जाएं और आज ही प्रण लें छाया ऋण से मुक्ति पाने का। इस ऋण को चुकाए बिना जीवन के आखिरी क्षण तक अभिशापों की काली साया हमारे पीछे पड़ी रहने वाली है।

(डॉ. दीपक आचार्य)

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