ज्योतिष में
प्रश्न विचार.
वैदिक ज्योतिष की अनेक शाखाएं हैं, जिससे फलित का विचार किया जाता है. उसमें से एक प्रश्न शास्त्र के नाम से है. प्रश्न शास्त्र एक ऎसी विद्या है, जो समय के अभाव में भी महत्वपूर्ण मार्ग-दर्शन करने में समर्थ होती है. प्रश्न का उत्तर तत-समय पूछे गए प्रश्न की कुण्डली बना कर दिया जाता है.
दिन-रात के मान को “अहोरात्र” कहते हैं. अहो का अर्थ होता है-दिन तथा रात्र का अर्थ होता है-रात. इसी प्रकार अहो से ‘हो’ तथा रात्रि से ‘रा’ लेकर शव्द बनता है-‘होरा’. ऋषि पराशरजी ने विस्तार पूर्वक अपनी पुस्तक बृहतपराशरहोरा में बताया है. इसी के साथ ही कल्याण वर्मा, वराहमिहिर और कालिदास जी ने भी इस पर काफी कुछ लिखा है.
प्रश्न शास्त्र में फलित के लिए व्यक्ति द्वारा पूछे गए प्रश्न पर ही विचार किया जाता है. परंतु कुछ ज्योतिषी इसके साथ जन्म कुण्डली और वर्ष कुण्डली का सम्यक अध्ययन कर प्रश्न-कर्ता का समाधान करते हैं.
प्रश्न कुण्डली के अध्ययन में पराशरी सिद्धातों के साथ-साथ ताजिक ज्योतिष व योगों की पूर्ण जानकारी एवं ग्रहों की स्थिति, डिग्री, लग्न सहित कारक ग्रहों इत्यादि का महत्त्व पूर्ण योगदान होता हैं.
प्रश्न शास्त्र के अनुसार प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति का स्थान एवं उसके द्वारा पूछे गए प्रश्न का समय उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना की जन्म कुण्डली में जन्म-समय और स्थान का. इसलिए प्रश्न समय की कुंडली का निर्माण उसी प्रकार सर्वांग रूप से किया जाता हैं, जैसे जन्मांक का निर्माण करते हैं.
प्रश्न शास्त्र में चौदह प्रकार के लक्ष्णों को भी विचार में लिया जाता हैं. यथा सटीक समय, स्थान, जातक की स्वांस की प्रकृति, उसकी स्थिति, स्पर्श, आरूढा़, दिशा, प्रश्नाक्षर, स्थिति(प्रश्नकर्ता की चाल-ढाल), चेष्ठा, भाव (मानसिकता), अवलोकन, उसकी पोशाक और निमित्त (उस समय के शुभ, अशुभ संकेत चिह्न). इसमें से कुछ लक्षण-शास्त्र और स्वर-शास्त्र पर आधारित बात हैं. इसके जानकार इन लक्षणों के आधार पर भी पृथक से निष्कर्ष निकाल कर निर्मित प्रश्न कुंडली के फलादेश से मिलान करते हैं और जिस पक्ष में संकेत अधिक प्राप्त होत हैं, का मार्ग-दर्शन, जातक को देते हैं. यह सिर्फ प्रश्न कुंडली के बारे में ही लिखा जज रहा हैं.
प्रश्न कुण्डली का लग्न, प्रश्नकर्ता का प्रतिनिधित्व करता है. पूछे गए प्रश्न के भाव एवं उसके स्वामी द्वारा उसका निर्धारण किया जाता है.
प्रश्नकर्ता का प्रश्न रिस्ता, वित्तीय निवेश, कैरियर मुद्दों, पारिवारिक मामलों, संघर्ष और मुकदमों, वस्तुओं के खोने या लापता लोगों आदि के बारे में हो सकता है. उदाहरण के लिए यदि पति या पत्नी से संबंधित प्रश्न हो तो सप्तम भाव को देखा जाएगा तथा सप्तमेश उसका कारक होगा.
इसी प्रकार से बिजनेस या काम से संबंधित प्रश्न हो तो दशम भाव एवं दशमेश का अवलोकन किया जाता है. इस प्रकार प्रश्नकर्ता की समस्या में कारक ग्रह प्रभावित होता है. विशेष रूप से उस भाव में स्थित किसी भी अन्य ग्रहों का होना भी हो सकता है जो आगे वर्णनात्मक जानकारी प्रदान कर सकता है, लेकिन समस्या के लिए एक ही कारक लिया जाना चाहिए.
अधिकांशत: चंद्रमा अनेक स्थिति के लिए एक महत्वपूर्ण कारक रहता है. चंद्रमा की स्थिति प्रश्न के विषय में काफी कुछ बताने में सहायक होती है. परंतु हमेशा यह तथ्य कारगर सिद्ध नहीं हो पाता क्योंकि कुण्डली में कई अनेक बातें भी होती हैं जिन्हें जानना आवश्यक होता है.
प्रश्न कुण्डली के प्रत्येक भाव का संक्षिप्त विवरण.
भाव
|
विषय
|
प्रथम (लग्न) भाव
|
जातक के व्यक्तित्व,, स्वास्थ्य, विचार और
सामान्य जीवन का पता चलता है.
|
द्वितीय भाव
|
कुटुम्ब पैतृक संपत्ति, धन, गहने, आभूषण और चल संपत्ति, मुंह के भीतरी भाग.
|
तृतीय भाव
|
छोटे भाई बहन, दोस्तों, पड़ोसियों, संचार, लेखन, घनिष्ठ संबंध, चचेरे भाई, छोटी यात्रा, साहस.
|
चतुर्थ भाव
|
माँ, घर, संपत्ति, भवनों, अचल संपत्ति, खेतों, कुओं, खानों और
पृथ्वी के अन्य संसाधनों, वाहनों, परिवार से मिलने वाली खुशी.
|
पंचम भाव
|
बच्चे, रोमांस, प्रेम संबंधों, खुफिया, उच्च शिक्षा, रचनात्मकता, सट्टा, शेयर और स्टॉक
में निवेश., चुनाव, मनोरंजन, इच्छाओं को दर्शाता है.
|
षष्ट भाव
|
बीमारी, रोग, दुश्मन, नौकर, मातहत, मुकदमेबाजी, अदालती मामलों, ऋण, प्रतियोगिता, पालतू जानवर, किरायेदारों, ऋण, चोर.
|
सप्तम भाव
|
जीवन साथी, प्रतिद्वंद्वी, विवाह, प्रेम, सार्वजनिक जीवन, सार्वजनिक छवि
के साथ व्यवहार, दुश्मन, चोर, युद्ध.
|
सप्तम भाव
|
जीवन साथी, प्रतिद्वंद्वी, विवाह, प्रेम, सार्वजनिक जीवन, सार्वजनिक छवि
के साथ व्यवहार, दुश्मन, चोर, युद्ध.
|
अष्टम भाव
|
दीर्घायु,, खतरा, बीमार
स्वास्थ्य, गुप्त या असंवैधानिक शारीरिक रिश्ते, दुर्घटनाओं, बीमा, विरासत, पति या पत्नी
का पैसा, करों, बंधक, पीड़ित, मनोगत विज्ञान
से संबंधित मामलों, काला जादू, ध्यान.
|
नवम भाव
|
पिता, लंबी यात्रा, धार्मिकता, दिव्य पूजा, दिव्य गुरु, विदेशी देशों
की यात्रा, कानून और अदालत, बच्चों की उच्च शिक्षा, मां की बीमारी.
|
दशम भाव
|
व्यवसाय, सेवा, कैरियर, नौकरी या पेशे
के परिवर्तन, पदोन्नति, सामाजिक स्थिति, प्रसिद्धि, किए गए अच्छे
या बुरे कर्म, सरकार या शासक, मालिक या नियोक्ता, पिता, पिता की स्थिति के साथ संबंधित होता है.
|
एकादश भाव
|
बडे़ भाई बहन, दोस्तों, लाभ व सफलता, जीवनसाथी का
सुख, माता - पिता की दीर्घायु, पितृ कर्म.
|
द्वादश भाव
|
व्यय, अस्पताल, जेल, तनहाई, गुप्त व्यवहार, दुख, मृत्यु, दान, छिपाना दुश्मन, घाटा, विदेश यात्रा इत्यादि को दर्शाता है.
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें