जानकी मंदिर.

जानकी मंदि.

जनकपुर बिहार का एक वैष्णव तीर्थ है, उपनिषत्कालीन ब्रह्मज्ञान तथा रामावत वैष्णव सम्प्रदाय दोनों से इसका सम्बन्ध है। जनकपुर तीर्थ का प्राचीन नाम मिथिला तथा विदेहनगरी था, सीतामढ़ी अथवा दरभंगा से जनकपुर 24 मील दूर नेपाल राज्य के अंतर्गत है, जिसके चारों ओर पूर्वक्रम से शिलानाथ, कपिलेश्वर, कूपेश्वर, कल्याणेश्वर, जलेश्वर, क्षीरेश्वर, तथा मिथिलेश्वर रक्षक देवताओं के रूप में शिव मन्दिर अब भी विद्यमान हैं। जनकपुर के चारों ओर विश्वामित्र, गौतम, बाल्मीकि और याज्ञवल्क्य के आश्रम थे, जो अब भी किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। जनकपुर महाभारत काल में एक जंगल के रूप में था, जहाँ साधु-महात्मा तपस्या किया करते थे। जनकपुर में अक्षयवट के तल से भगवान श्रीराम की एक मूर्ति प्राप्त हुई थी, वह यहाँ विराजी गयी थी,

नेपाल के जनकपुर में स्थित जानकी मंदिर ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर देवी सीता को समर्पित है। जानकी मंदिर का निर्माण मध्य भारत के टीकमगढ़ की रानी वृषभानु कुमारी ने 1911 ईसवी में करवाया गया था। इसकी तत्कालीन लागत नौ लाख रुपये थी। स्थानीय लोग इस कारण से ही इसे नौलखा मंदिर भी कहते हैं। 1657 में देवी सीता की स्वर्ण प्रतिमा यहां मिली थी और मान्यतानुसार यहीं सीता माता विवाह पूर्व रहा करती थीं।

राजपूत स्थापत्यशैली का उदाहरण.

यह नेपाल में सबसे महत्त्वपूर्ण राजपूत स्थापत्यशैली का उदाहरण है और जनकपुरधाम भी कहलाता है। मंदिर परिसर एवं आसपास 115 सरोवर एवं कुण्ड हैं, जिनमें गंगासागर, परशुराम कुण्ड एवं धनुष-सागर अत्याधिक पवित्र कहे जाते हैं।

एक संन्यासी ने की थी खोज.

कहते हैं इस स्थान की खोज एक संन्यासी शुरकिशोरदास ने की थी, जब उन्हें यहां सीता माता की प्रतिमा मिली थी। असल में शुरकिशोरदास ही आधुनिक जनकपुर के संस्थापक भी थे। इन्हीं संत ने सीता उपासना का ज्ञान दिया था। मान्यता अनुसार राजा जनक ने इसी स्थान पर शिव-धनुष के लिये तप किया था। इस मंदिर की एक बड़ी खासियत है कि पिछले 56 सालों से 24 घंटे भजन-कीर्तन हो रहा है। 15-16 पुजारियों की टीम यहां 24 घंटे कीर्तन करती हैं।

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