योग के चार पथ.

योग के चार पथ.

एक दूसरे से अलग होते हुए भी योग के चारों पथ का लक्ष्य एक ही है – ‘आत्म बोध’.

जिस समय से योग का जन्म हुआ है, उसी समय से उसके चार पथ अस्तित्व में हैं. अतीत में, केवल एक योग पर ही ध्यान केंद्रित किया गया था, पर भगवद्गीता में एक हद तक चारों योग पथ की चर्चा की गई है.

शंकर (आचार्य) मुख्य रूप से ज्ञान योग पर ध्यान केंद्रित करते हैं. रामानुज (आचार्य) सिर्फ़ भक्ति योग पर और पतंजलि के योग सूत्र में राज योग के महत्त्व पर बल दिया गया है. 1880 में जब विवेकानंद ने चार योग-पथों के बारे में उपदेश दिया तब कर्म योग की जानकारी मिली.

राज योग- इच्छा शक्ति का पथ.

पतंजलि योग सूत्र के अनुसार, योग, मन को अपने नियंत्रण में रखने के लिए किया जाता है.

राज योग के तहत दो प्रथायें हैं:

बहिरंग योग- व्यवहार के स्तर (यम और नियम) तथा शरीर और मन (आसन और प्राणायाम) को नियंत्रण में रखने के लिए यह योग नियमों एवं विनियमों को प्रदान करता है.

अंतरंग योग-  धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि (चेतना-सीधा मन से संबंधित) शामिल हैं.

कर्म योग- कर्म के पथ:

भगवद्गीता कर्म योग के विचार का मुख्य स्रोत है ,जिसे बाद में स्वामी विवेकानंद ने सविस्तृत किया. भगवद्गीता के अनुसार हमें फल की चिंता किए बिना कर्म करते रहना चाहिए.

कर्म के तीन रूप हैं:



तामसिक: मजबूरी या बंधन में किया गया काम जो बिगड़ जाए और भ्रांति की स्तिथि में हिंसक हो जाए.

राजसिक: इच्छाएँ पूरी करने के लिए अहंकार और बेहद प्रयास करके कुछ करना.

सात्विक: बिना लगाव के या बिना प्यार व घृणा के कर्म करना.

काम्‌य कर्म को योगिक कर्म में परिवर्तित करने के लिए कर्म योग को अपनाया जाता है.


भक्ति योग-पूजा के पथ.


भक्ति योग एक व्यक्ति में ऐसी भावनाएँ जगाता है जो समाज के लिए प्यार, भाईचारा, विश्वबंधुत्व और एकता का संदेश फैलाने में मदद करता है. काम और त्याग के मिलन से प्रेम का जन्म होता है ; प्रेम और शरणागति (आत्मसमर्पण) का फल है- भक्ति.

संतुष्टि और मन की शांति भक्ति योग के पथ का फल है जो सबसे आसान पथ है. यहाँ भक्ति- योग आत्मा और परमात्मा का संबंध है. भगवत्‌पुराण में भक्ति के नौ रूप हैं-

१) श्रवण, २) कीर्तन, ३) स्मरण, ४) पाद-सेवन, ५) अर्चना, ६) वंदना, ७) दासता (दास्‌य), ८) मित्रता (साख्य-भाव) और ९) आत्म-निवेदन (संपूर्ण समर्पण).

ज्ञान योग.

यह मार्ग तार्किक (विवादप्रिय) मन, विशाल मनोभावना एवं जागरूकता, सहज मन के विकास में मदद करता है.

ज्ञान योग के तीन चरण हैं:

श्रवण- ज्ञान का पहला प्रदर्शन. (किताब पढ़कर, वीड़ियो देखकर, आदि)
मनन- सोच-विचार करने की शक्ति.

निदिध्यासन- महाकाव्यों को अच्छी तरह समझने का अंतिम चरण है. वो चरण जो सत्य को पाने के लिए ध्यान में मग्न हो जायें.

ज्ञान योग का परम लक्ष्य है- सारे सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर संतृप्त रहना / आत्मा की वास्तविकता को शरीर से अलग करने की क्षमता को समझना.

(डॉ.विनोद कुमार, जूनियर वैज्ञानिक अधिकारी (योग और मनोरोग),

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