भारतीय परम्परा
अनुसार
जन्म-दिन
मनाने की
संक्षिप्त विधि.
जन्मदिवस मनाने का ध्येय अपने पूर्व जीवन के सुकर्मों व दुष्कर्मों पर दृष्टि डालकर दुर्गुणों को त्यागने व सत्कर्मों को अपनाने के लिए प्रभु से प्रार्थना करना ही जन्मदिवस मनाने का उद्देश्य है|
प्रात: काल उठकर, सर्व प्रथम मानव जन्म देने के लिए ईश्वर का आभार प्रकट करना। प्रसन्न एवं उत्साहित भाव सहित नित्य नैमित्तिक कर्म के पश्चात आंतरिक और वाह्य शुध्दी उपरांत ईश्वर आराधना प्रारंभ करे। स्तुति-प्रार्थना उपासना, यज्ञविधि करके स्वस्तिवाचन व शंतिकरण के मन्त्र स्वर सहित बोलें और दैनिक यज्ञ के साथ निम्न मन्त्रों की आहुतियाँ दें..
“जीवेम शरदः शतम्”
(हम सौ सालों तक जीयें)
“बुध्येम शरदः शतम्”
(हम सौ वर्षों तक बुद्धिमान बने रहें)
रोहेम शरदः शतम्
(हम सौ वर्षों तक पुष्ट रहें)
“भवेम शरदः शतम्”
(सौ वर्षों तक बने रहें)
“भूयेम शरदः शतम”
(सौ वर्षों तक पवित्र बने रहें)
“भूयसीः शरदः शतात्”
(सौ वर्षों तक ऐसी कल्याणकारी बातें होती रहें)
“ॐउप प्रियं पनिन्पतं युवानमाहुतीवृधम्|
अगन्म बिभ्रतो नमो दीर्घमायुः कृणोतु मे||अथर्ववेद-7.32.1
भावार्थ- हे स्तुति करने योग्य प्रियतम प्रभु! जिस प्रकार मैं इस आहुति द्वारा इस यज्ञ की अग्नि को बढ़ा रहा/रही हूँ, वैसे ही मैं सात्विक अन्न का सेवन करके अपनी आयु को बढ़ाता हुआ / बढ़ाती हुई प्रतिवर्ष अपना जन्म-दिन मनाता/मनाती रहूँ|
ॐ इंद्र जीव सूर्य जीव
देवा जीवा जीव्यासमहम्|
सर्वमायुर्जीव्यासम्|| अथर्ववेद-19.70.1
भावार्थ- हे परम ऐश्वर्यवान देव! आप हमें श्रेष्ठ जीवन दो| हे सूर्य! हे देवगण! आपकी अनुकूलता पूर्वक मैं दीर्घ जीवी होऊं|
ॐआयुषायुः कृतां जीवायुष्मान जीव मा मृथाः|
प्राणेनात्मन्वतां जीव मा मृत्योरुदगा वशम् || अथर्ववेद-19.27.8
भावार्थ- मैं संकल्प लेता हूँ कि मुझे मृत्यु के वशीभूत नहीं होना है| कर्मशील व आत्मबल युक्त होकर ईश्वर-भक्त, महापुरुषों का अनुकरण करता हुआ, मैं आयु को बढ़ाऊंगा| जीवन भर श्रेष्ठ कर्म करता हुआ, यश को प्राप्त करूंगा|
ॐ शतं जीव शरदो वर्धमानः शतं
हेमन्तान्छतमु वसन्तान
शतमिन्द्राग्नी सविता
बृहस्पतिः शतायुषा हविषेमं पुनर्दुः|| ऋग्वेद -10.161.4
भावार्थ- मनुष्य श्रेष्ठ कर्म व संयम धारण करके सौ वर्षों तक जीने का प्रयास करे| विद्युत, अग्नि, सूर्य, बृहस्पति आदि से समुचित सहयोग लेकर मनुष्य सौ वर्ष तक जीवन धारण कर सकता है|
ऊँ सत्यामाशिषं कृणुता वयोधै कीरिं चिद्ध्यवथ सवेभिरेवैः|
पश्चा मृधो अप भवन्तु विश्वास्तद रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे|| अथर्ववेद-20.91.11
भावार्थ- हे विद्वानों..!! आपका ‘”आयुष्मान भवः: का आशीर्वाद सत्य हो! आपके मार्ग का अनुसरण करने वाले की रक्षा आप ज्ञान देकर करते हो| आपके मार्गदर्शन में चलने वालों के सब दोष नष्ट हो जाते हैं| इसलिए हे श्रेष्ठ स्त्री-पुरुषों! आप हमें वेदोक्त शिक्षा दो|
ओं जीवास्थ जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||1||
ओं उपजीवा स्थोप जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||2||
ओं सं जीवा स्थ सं जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||3||
ओं जीवला स्थ जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||4|| अथर्ववेद-19.69.1-4
भावार्थ- जल की भांति शांत स्वभाव सज्जनों! आप मुझे दीर्घायु का शुभाशीष दो| सदाचरण व प्रभु पूजा को धारण कर मैं अपने जीवन को बढ़ा सकूं| आप ऐसा जीवन दे सकते हो, सो कृपा करके मुझे श्रेष्ठ जीवन तत्व प्रदान कीजिये| मैं आप लोगों की सहायता व प्रेरणा से दीर्घ जीवन प्राप्त करूं|
इसके बाद जितने वर्ष के हो गए हो, उतनी बार अग्नि मे मंत्रोच्चार से आहुति देकर पूर्णाहुति करें|
इसके बाद यज्ञ-प्रार्थना व शांतिपाठ के बाद सभी वरिष्ठ जन पुष्प वर्षा के संग निम्न शब्दों से आशीर्वाद दें..
हे….(नाम का उच्चारण करें)!! त्वं जीव शरदः शतं वर्धमानः| आयुष्मान तेजस्वी वर्चस्वी श्रीमान भूयाः||
अर्थात- हे……..!! तुम आयुष्मान, विद्यावान, धार्मिक, यशस्वी, पुरुषार्थी, प्रतापी, परोपकारी, श्रीमान/श्रीमती बनो!!
आपके व आपके परिजनों के जन्मदिन को इस विधि से अवश्य ही मनाएं।।
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