(लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)
श्रीमद्भागवत महापुराण:
द्वितीय स्कन्ध: द्वितीय
अध्यायः श्लोक 1-9
का हिन्दी अनुवाद
भगवान के स्थूल और सूक्ष्मरूपों की धारणा तथा क्रममुक्ति और सद्योमुक्ति का वर्णन.
जल चाहने वालों के लिये नदियाँ क्या बिलकुल सूख गयी हैं? रहने के लिये क्या पहाड़ों की गुफाएँ बंद कर दी गयीं हैं? अरे भाई! सब न सही, क्या भगवान भी अपने शरणागतों की रक्षा नहीं करते? ऐसी स्थिति में बुद्धिमान लोग भी धन के नशे में चूर घमंडी धनियों की चापलूसी क्यों करते हैं?
इस प्रकार विरक्त हो जाने पर अपने हृदय में नित्य विराजमान, स्वतःसिद्ध, आत्मस्वरूप, परम प्रियतम, परम सत्य जो अनन्त भगवान हैं, बड़े प्रेम और आनन्द से दृढ़ निश्चय करके उन्हीं का भजन करें; क्योंकि उनके भजन से जन्म-मृत्यु के चक्कर में डालने वाले अज्ञान का नाश हो जाता है। पशुओं की बात तो अलग है; परन्तु मनुष्यों में भला ऐसा कौन है जो लोगों को इस संसाररूप वैतरणी नदी में गिरकर अपने कर्मजन्य दुःखों को भोगते हुए देखकर भी भगवान का मंगलमय चिन्तन नहीं करेगा, इन असत् विषय-भोगों में ही अपने चित्त को भटकने देगा?
कोई-कोई साधक अपने शरीर के भीतर हृदयाकाश में विराजमान भगवान के प्रादेशमात्र स्वरूप की धारणा करते हैं। वे ऐसा ध्यान करते हैं कि भगवान की चार भुजाओं में, शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं। उनके मुख पर प्रसन्नता झलक रही है। कमल के समान विशाल और कोमल नेत्र हैं। कदम्ब के पुष्प की केसर के समान पीला वस्त्र धारण किये हुए हैं। भुजाओं में श्रेष्ठ रत्नों से जड़े हुए सोने के बाजूबंद शोभायमान हैं। सिर पर बड़ा ही सुन्दर मुकुट और कानों में कुण्डल हैं, जिनमें जड़े हुए बहुमूल्य रत्न जगमगा रहे हैं।
क्रमश:
साभार krishnakosh.org
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