(लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)
श्रीमद्भागवत महापुराण:
द्वितीय स्कन्ध: प्रथम
अध्यायः श्लोक 15-29
का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित ने पूछा- ब्रह्मन्! धारणा किस साधन से किस वस्तु में किस प्रकार की जाती है और उसका क्या स्वरूप माना गया है, जो शीघ्र ही मनुष्य के मन का मैल मिटा देती है?
श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! आसन, श्वास, आसक्ति और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करके फिर बुद्धि के द्वारा मन को भगवान के स्थूल रूप में लगाना चाहिये। यह कार्यरूप सम्पूर्ण विश्व जो कुछ कभी था, है या होगा- सब-का-सब जिसमें दीख पड़ता है, वही भगवान का स्थूल-से-स्थूल और विराट् शरीर है। जल, अग्नि, वायु, आकाश, अहंकार, महत्तत्त्व और प्रकृति- इन सात आवरणों से घिरे हुए इस ब्रह्माण्ड शरीर में जो विराट् पुरुष भगवान हैं, वे ही धारणा के आश्रय हैं, उन्हीं की धारणा की जाती है। तत्त्वज्ञ पुरुष उनका इस प्रकार वर्णन करते हैं- पाताल विराट् पुरुष के तलवे हैं, उनकी एड़ियाँ और पंजे रसातल हैं, दोनों गुल्फ-एड़ी के ऊपर की गाँठें महातल हैं, उनके पैर के पिंडे तलातल हैं। विश्व-मूर्ति भगवान के दोनों घुटने सुतल हैं, जाँघें वितल और अतल हैं, पेंडू भूतल है और परीक्षित! उनके नाभिरूप सरोवरों को ही आकाश कहते हैं। आदिपुरुष परमात्मा की छाती को स्वर्गलोक, गले को महर्लोक, मुख को जनलोक और ललाट को तपोलोक कहते हैं। उस सहस्र सिर वाले भगवान का मस्तक समूह ही सत्यलोक है। इन्द्रादि देवता उनकी भुजाएँ हैं। दिशाएँ कान और शब्द श्रवणेन्द्रिय हैं। दोनों अश्विनीकुमार उनकी नासिका के छिद्र हैं; गन्ध घ्राणेन्द्रिय है और धधकती हुई आग, उनका मुख है।
क्रमश:
साभार krishnakosh.org
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