उपासना और सेवा धर्म का प्रयोग साथ साथ.


उपासना और सेवा धर्म
का प्रयोग साथ साथ.

गुणों का अभ्यास क्रियाओं के द्वारा किया जाता है। तैरना सीखने के लिए तालाब में उतरना पड़ता है। पहलवानी सीखने वाले अखाड़े का आश्रय लेते हैं। संगीत सीखने वाले बाजों की सहायता लेते हैं। ईश्वर-भक्ति की भावना बढ़ाने के लिए पूजा-उपासना में संलग्न होना पड़ता है। शिक्षार्थी को कॉपी, पुस्तक, कलम, दवात का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिकों को अपने अन्वेषण कार्य में अनेक प्रकार के यंत्रों, रसायनिक द्रव्यों और प्रयोगशालाओं की जरूरत होती है।

सद्गुणों का अभ्यास बढ़ाने के लिए सत्कर्मों में लगे रहने का कार्यक्रम बनाना पड़ता है। केवल चाहने या सोचने से सद्गुणों का अभ्यास नहीं हो सकता, उनमें गहरी आस्था उत्पन्न नहीं हो सकती। इसलिए जो सद्गुणों की उपयोगिता और महत्व को अनुभव करते हों, उनको अपने भीतर जमा हुआ देखना चाहते हों, उनके लिए आवश्यक है कि अपने दैनिक जीवन में किसी न किसी रूप में सत्कार्यों का व्यवहार अवश्य करते रहें। जो विचार उपयोगी प्रतीत होते हैं, उन्हें कार्यान्वित करने के लिए भी तत्पर रहें।


(पं. श्रीराम शर्मा आचार्य-दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम)

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