शुभासित-25


शुभासि

1.देवता, पितर, बुध्दिमान, सन्यासी, और अतिथि... इन पांचो का सत्कार करने वाला यशश्वी होता हैं।

2.समय रहते अगर बुरी आदत ना बदली जाए, तो बुरी आदतेंसमय को ही बदल देती हैं

3.लगन, कर्तव्य और निष्ठा नजर नहीं आते, किन्तु असंभव कार्य को भी संभव बना देते हैं।

4. चाँदनी लहरों को तूफ़ान बना देती है
मौत जिंदा इंसान को बेजान बना देती है
रास्ते के पत्थर को पत्थर मत समझना
क्योंकि इंसान की श्रद्दा उसे भगवान बना देती है।

5.“दोस्तका शब्दार्थ हैं, जो दोष का अस्तकर दे, वह होता हैं - दोस्त।

6.अज्ञान की शक्ति क्रोधहैं और ज्ञान की शक्ति शांति

7. बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रियनिग्रह, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, अधिक न बोलना, शक्ति के अनुसार दान और कृतज्ञताये आठ गुण ख्याति बढ़ाते हैं।

8.ईर्ष्या करने वाला, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, सदा शंकित रहने वाला और दूसरों के सहारे पर जीवन-निर्वाह करने वाला, ये छः सदा दुखी रहते हैं।

9.खुद के पूर्वाग्रहों से उपर उठने की योग्यता ही को निष्पक्षताकहते हैं|

  10.   सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव की नाराजी को भुलाकर उसके घर मकर संक्रांति के दिन गए थे। पुत्र ने भी उनका यथोचित सत्कार किया था। आपसी मनमुटाव को भुलाने और स्नेहाशिक्त जीवन यात्रा बनाये रखने का यह भाव, हम सबके स्वभाव में उतर जाए।

 11. ब्रम्हांड, विश्व, काल और ज्ञान, ये सब अनन्तहैँ, सीमा से रहित हैं। इनके अतिरिक्त समस्त चराचर सीमित हैं। जो असीमित हैं, वहीं सत्य हैं और जो सीमित हैं, वह असत्य और मिथ्या हैं। मनुष्य की सोच, कर्म और ज्ञान भी सीमावध्द हैं।

 12.
अज्ञान के अंध:कार से अन्धे हुए मनुष्य की आंखे ज्ञानरुप अंजन से खोलने वाले को गुरुकहते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत को शिक्षक। यहीं अंतर हैं, गुरु और शिक्षक में।

 13.जिस तरह बूंद बूंद कर पानी से घडा भरता हैं, उसी तरह विद्या, धर्म, और धन का भी संचय क्रमिक रूप से होता हैं।

 14.आदमी जब तक अपनी योग्यता प्रदर्शित नहीं करता, तब तक उसकी उपेक्षा होती हैं, जैसे लकड़ी (काष्ट) को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, किन्तु जैसे ही वह जलने लगती हैं, लोगो का ध्यान उस पर आ जाता हैं।

 15.जो बातें हमारे जीवन को ऊंचा सकें, रहन-सहन, सोच-विचार और आचरण को मर्यादित कर सकें, वे सब धर्म के अंतर्गत आती हैं। धर्मपरिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में उत्कृष्टता प्रदान करने का सहारा हैं।

 16.सुर्य की किरणों का संपर्क पाकर रेत में भी तपिश उत्पन्न हो जाती हैं, जो पदयात्री को कष्ट पहुचाने लगती हैं, उसी प्रकार किसी एक का भी सहयोग पाकर दुष्ट मनुष्य अधिक उपद्रव करने लगता हैं। 

 17.श्रवण करने की इच्छा, प्रत्यक्ष में श्रवण करना, ग्रहण करना, स्मरण में रखना, तर्क-वितर्क, सिद्धान्त निश्चय, अर्थज्ञान और तत्वज्ञान, ये बुद्धी के आठ अंग माने गये हैं।

 18.चलते समय संतुलन खोना, बोलते समय आवाज न निकलना, पसीना छूटना और भयभीत होना, ऐसे लक्षण मरने वाले के अतिरिक्त याचक (मांगने वाला-भिखारी नहीं) में भी पाये जाते हैं। 

 19.जिस प्रकार पक्षी अपने दोनो पंखों के सहारे आकाश की ऊंचाई में उड सकता है, उसी प्रकार ज्ञान और कर्म रूपी दो पंखों के सहारे, मनुष्य परब्रह्म को प्राप्त कर सकता है।

 20.जिद्दी या अड़ियल स्वभाव के मत बनिये। विद्वान भी जिद्द कारण सनकी कहलाता हैं। हो सकता हैं, अपनी जिद्द के कारण बाद में खुद को पछताना पड़ें।

 21.जीवन में अभाव की स्थिति, उसके उपार्जन का प्रेरक तथा बुध्दि और कर्म, उपार्जन के सहायक होते हैं।

22.कुतर्की का पतन उसके जीवन में अवश्य हो जाता हैं। उससे प्रभावित व्यक्ति भी पतनोन्मुख रहता हैं। तर्कमार्ग दर्शक होता हैं और कुतर्क पथ भ्रष्ट करता हैं।

23.प्रसन्नता को भौतिक सुखों में कम और अपने अन्तर्मन में अधिकाधिक खोजने का प्रयास प्रतिदिन करते रहना चाहिए।

24.नकारात्मकता को दूर करने के लिए भावनात्मक स्वच्छता अनिवार्य हैं।

25.दरिया बनकर किसी को डुबाने से बेहतर हैं, जरिया बनकर उबार लेना।

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