जटायु व गिलहरी चुप नहीं बैठे.


जटायु गिलहरी
चुप नहीं बैठे.
पंख कटे जटायु को गोद में लेकर भगवान् राम ने उसका अभिषेक आँसुओं से किया। स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए भगवान् राम ने कहा-तात्। तुम जानते थे, रावण दुर्द्धर्ष और महाबलवान है, फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया? 
अपनी आँखों से मोती ढुलकाते हुए जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा- प्रभो! मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था, जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती?

भगवान् राम ने कहा-तात्! तुम धन्य हो! तुम्हारी जैसी संस्कारवान् आत्माओं से संसार को कल्याण का मार्गदर्शन मिलेगा।

गिलहरी पूँछ में धूल लाती और समुद्र में डाल आती। वानरों ने पूछा-देवि! तुम्हारी पूँछ की मिट्टी से समुद्र का क्या बिगडे़गा। तभी वहाँ पहुँचे भगवान् राम ने उसे अपनी गोद में उठाकर कहा 'एक-एक कण धूल एक-एक बूँद पानी सुखा देने के मर्म को समझो, वानरो। यह गिलहरी चिरकाल तक सत्कर्म में सहयोग के प्रतीक रूप में सुपूजित रहेगी। 
जो सोये रहते हैं, वे तो प्रत्यक्ष सौभाग्य सामने आने पर भी उसका लाभ नहीं उठा पाते। जागृतात्माओं की तुलना में उनका जीवन जीवित-मृतकों के समान ही होता है।

प्रज्ञा पुराण भाग-
by AWGP 

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