विजया एकादशी.
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत, महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। विजया एकादशी अपने नामानुसार विजय प्रदान करने वाली है। शत्रुओं से जब घिरे हों और पराजय सामने खड़ी हो, उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी, विजय दिलाती है। प्राचीन काल में कई राजे-महाराजे इस व्रत के प्रभाव से अपनी हार को जीत में बदल चुके हैं। इस महाव्रत के विषय में पद्म पुराण और स्कन्द पुराण मे अति सुन्दर वर्णन मिलता है।
व्रत कथा.
अर्जुन, भगवान श्री कृष्ण से एकादशी का महात्मय सुन कर आनन्द विभोर हो रहे हैं। जया एकादशी के महात्मय को जानने के बाद अर्जुन कहते हैं- माधव! फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महात्मय है? मैं जानना चाहता हूं, अत: कृपा करके इसके विषय में जो कथा है- वह सुनाएं।
अर्जुन द्वारा अनुनय पूर्वक प्रश्न किये जाने पर श्री कृष्णजी कहते हैं- प्रिय! अर्जुन, फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी, विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता है। हे-अर्जुन, तुम मेरे प्रिय सखा हो, अत: मैं इस व्रत की कथा तुमसे कह रहा हूं, आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को नहीं सुनाई। तुमसे पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्माजी से सुन पाए हैं। तुम मेरे प्रिय हो इसलिए तुम मुझसे यह कथा सुनो।
त्रेतायुग की बात है- श्री रामचन्द्रजी जो विष्णु के अंशावतार थे, अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए सागर तट पर पहुंचे। सागर तट पर भगवान का परम भक्त जटायु नामक पक्षी रहता था। उस पक्षी ने बताया कि सीता माता को सागर पार लंका नगरी का राजा रावण ले गया है और माता इस समय आशोक वाटिका में हैं। जटायु द्वारा सीता का पता जानकर श्रीरामचन्द्रजी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे, परंतु सागर के जल जीवों से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना प्रश्न बनकर खड़ा था।
भगवान श्रीराम इस अवतार में मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में दुनियां के समझ उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे; अत: आम मानव की भांति चिंतित हो गये। जब उन्हें सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था, तब उन्होंने लक्ष्मण से पूछा कि हे लक्ष्मण इस सागर को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा, अगर तुम्हारे पास कोई उपाय है, तो बताओ। श्री रामचन्द्रजी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले प्रभु आपसे तो कोई भी बात छिपी नहीं है। आप स्वयं सर्वसामर्थवान है, फिर भी मैं कहूंगा कि यहां से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का निवास हैं, हमें उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए।
भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके, अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें, इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे। श्रीरामचन्द्रजी ने तब तिथि के आने पर अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। राम और रावण का युद्ध हुआ, जिसमें रावण मारा गया।
विधान.
हे! अर्जुन, विजया एकादशी की जो कथा है-वह, मैंने तुमसे कहा। अब इस व्रत का जो विधान है, वह तुम मुझसे सुनो। श्री रामचन्द्रजी ने जिस विधि से विजया एकादशी का व्रत किया, उसी विधि से विजया एकादशी का व्रत करना चाहिए। दशमी के दिन एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें; फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण, रजत, ताम्बा अथवा मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें। एकदशी के दिन उस कलश में पंचपल्लव रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। व्रती पूरे दिन भगवान की कथा का पाठ एवं श्रवण करें और रात्रि मे कलश के सामने बैठकर जागरण करे। द्वादशी के दिन कलश को योग्य ब्राह्मण अथवा पंडित को दान कर दें।
हे! अर्जुन, विजया एकादशी की जो कथा है-वह, मैंने तुमसे कहा। अब इस व्रत का जो विधान है, वह तुम मुझसे सुनो। श्री रामचन्द्रजी ने जिस विधि से विजया एकादशी का व्रत किया, उसी विधि से विजया एकादशी का व्रत करना चाहिए। दशमी के दिन एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें; फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वर्ण, रजत, ताम्बा अथवा मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें। एकदशी के दिन उस कलश में पंचपल्लव रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। व्रती पूरे दिन भगवान की कथा का पाठ एवं श्रवण करें और रात्रि मे कलश के सामने बैठकर जागरण करे। द्वादशी के दिन कलश को योग्य ब्राह्मण अथवा पंडित को दान कर दें।
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