शुभासित.
01.जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार
कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है।
02.अपने दोस्त के लिए जान दे देना, इतना मुश्किल नहीं है; जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को
ढूँढ़ना, जिस पर जान दी जा सके।
03.पिता की सेवा करना जिस प्रकार
कल्याणकारी माना गया है; वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं।
04.जैसे पके हुए फलों को गिरने के
सिवा कोई भय नहीं; वैसे ही पैदा हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं।
05.हताश न होना सफलता का मूल है और
यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो के लिए प्रेरित करता है।
06.तप ही परम कल्याण का साधन है।
दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं।
07."जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि
गरीयसी"।
जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है।
महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
08.कोई भी व्यक्ति अयोग्य नहीं होता; केवल उसको उपयुक्त काम में
लगाने वाला ही कठिनाई से मिलता है।
09.बलवान व्यक्ति की भी बुद्धिमानी, इसीमें है कि वह जानबूझ कर किसी
को शत्रु न बनाए।
10.समूचे लोक व्यवहार की स्थिति बिना
नीतिशास्त्र के उसी प्रकार नहीं हो सकती, जिस प्रकार भोजन के बिना प्राणियों
के शरीर की स्थिति नहीं रह सकती।
11.सारा जगत स्वतंत्रता के लिए
लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी
प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है।
12.असफलता का मौसम, सफलता के बीज बोने के लिए
सर्वश्रेष्ठ समय होता है।
13.तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं
पहुँचा जा सकता। मूर्ख लोग तर्क करते हैं, जबकि बुद्धिमान विचार करते हैं।
14.भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा
में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही
नहीं सकता।
15.कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ
मिलते हैं; वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है।
16.अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के
चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से
उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
17.यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके
साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार
करें।
18.सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो
प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध।
19.यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहने वाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते।
20.मातृभाषा, मातृ-संस्कृति और मातृभूमि ये
तीनों सुख-कारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें।
(ऋग्वेद)
21.सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि
हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम,यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों
न हो?
22.रामायण का स्वाध्याय और तदनुकूल
आचरण; समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है।
23.कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास
नहीं बनाता, केवल स्वार्थ ही मनुष्य को दास बनाता है।
24.शासन के समर्थक को जनता पसंद नहीं
करती और जनता के पक्षपाती को शासन। इन दोनो का प्रिय कार्यकर्ता दुर्लभ है।
25.चिंता से चित्त को संताप और
आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना
चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें