इनको मिलता प्यार/स्नेह.
(ज्योतिष)
पांचवां भाव प्रेम/स्नेह को भी प्रकट करता हैं।
कुंडली के पंचम यानी पांचवे भाव से किसी भी इंसान के जीवन में कितना प्यार है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। साथ ही यह भी देखा जा सकता है कि प्यार परिवार का है या पति-पत्नी का, भाई-बहन का है, प्रेमिका का। आपका व्यवहार और आपके जीने का तौर-तरीका आपकी कुंडली के भावों से तय होता है। आपकी मिलनसारिता प्यार, सम्मान और आपके रिश्तों को भी कुंडली से देखा जा सकता है, लेकिन इन सबके ऊपर कुंडली के योग आपके प्यार के पैमाने को तय कर देते हैं।
कुंडली के पांचवे भाव या कुंडली के पांचवे स्थान (पंचमेश) से प्रेम की स्थिति का जायजा लिया जा सकता है।
कुंडली के पांचवें भाव का स्वामी यदि लगनस्थ यानी पहले स्थान (लगन) हो, तो मानव को शारीरिक सुख और बुद्धि प्राप्त होता है।
- पंचमेश के दूसरे भाव में होने पर इंसान को धन व परिवार का सुख मिलता है।
- पंचमेश के तीसरे भाव में होने पर छोटे भाई-बहनों से स्नेह की प्राप्ति होती है।
- पंचमेश के चौथे भाव में होने पर माता का और जनता-जनार्दन का प्रेम मिलता है।
- पंचमेश यदि पांचवे भाव में है तो व्यक्ति को पुत्रों से प्रेम और मान-सम्मान मिलता है।
- पंचमेश के सातवें भाव में होने पर जीवनसाथी का प्रेम और सुख मिलता है।
- पंचमेश के नौवें भाव में होने पर तो पिता का प्यार मिलने के साथ भाग्य साथ देता है और भगवान की कृपा बनी रहती है।
- पंचमेश के दसवें भाव में होने पर गुरुजनों और अधिकारियों का प्रेम मिलता है।
- पंचमेश ग्यारहवें भाव में हो तो मित्रों व बड़े भाइयों का प्रेम मिलता है।
इन भावों में होने से आती है सुख में कमी.
यह पंचमेश की शुभ स्थिति के बारे में अभी तक जानकारी दी गई, लेकिन कुंडली के कुछ भाव ऐसे भी हैं जहां पर पंचमेश की स्थिति प्रेम में कड़वाहट घोल देती है। पंचमेश यदि छठवें, आठवें, और बारहवें भाव में हो तो प्यार के लिए शुभ नहीं है।
विशेष- पंचमेश के अष्टम होने पर व्यवहारिक ज्ञान की कमी रहती हैं अथवा कह सकते हैं कि जीवन में मूढ़ता अधिक होती हैं। ज्ञान उदय तब तक नहीं हो पता जब तक प्रभाव युक्त अपने इष्ट देव/देवी की तपस्या न कर ली जाये।
लग्न का स्वामी भी देता है-पंचमेश जैसा सुख.
पंचमेश के जैसी स्थिति लग्न यानी पहले भाव के स्वामी की भी मानी जाती है। यह दूसरे भाव में जाकर परिवार का, तीसरे में भाई-बहनों का,चौथे में माता व जनता का, पांचवे में में पुत्र-पुत्री का, सातवें में पत्नी का, नौवे में पिता का और दसवें में गुरुजनों का स्नेह दिलाता है।
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