शुभासित-25


शुभासि

1.
 संसार में दोष या कलंक रहित कोई नहीं हैं।

2.
कुशल व्यक्ति कठिन कार्य को भी सरल बना लेता हैं।

3.
विपरीत काल में कर्म के प्रति अत्यधिक सचेत रहें क्योकि कभी कभी अच्छा कर्म भी दुखदाई हो सकता हैं।

4.
धन संचय की वृत्ति अपनाये रखिये क्योकि संकट के समय में धन ही काम आता हैं।

5.
डार्विन का सिद्धांत धर्म के इस वाक्य से मेल खाता हैं कि जिसका उदय होता हैं, उसका अस्त निश्चित है। इसलिए जीवन का एक एक क्षण कीमती होता हैं, उसे कर्म से संजोयें रखिये क्योकि बचपन और बुढापा तो वैसे भी अनुपयोग में निकल जाता हैं।

6.
भलाई करना कर्तव्य नहीं, उपकार की भावना का अंग होने से ही आत्मिक आनंद का श्रोत्र बन जाता हैं।

7.
संकटों से घबराना नहीं, टकराना चाहिए। मूर्खता करोगे तो पछताना भी पड़ेगा।

8.
जिस व्यक्ति का जीवन, संस्कार और कर्म के सांचे में ढल जाता हैं, वह मूल्यवान हो जाता हैं।

9.
यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो अपना ध्यान समस्या पर नहीं, समाधान में लगाइए।

10.
ताकत शारीरिक क्षमता से नहीं आती, वह तो अदम्य इच्छाशक्ति से मिलती हैं|

11.
आचरणअच्छा हो तो मन में विचार भी अच्छे ही आते हैं।

12.
आत्मसम्मान की नींव चरित्रहैं। वीरता ,कायरता, पवित्रता अपवित्रता, यह सब चरित्र से पता चल जाता हैं।

13.
चरित्र निर्माण के तीन आधार स्तम्भ है; ,सत्संग, अध्ययन और अनुभव।

14.
खुद को सत्यवान और ज्ञानी समझने वालो का उन्माद, समय अवश्य तोड़ता हैं।

15.
किसी भी समस्या को चेतना के उसी माप-दंड पर रह कर हल नहीं निकाला जा सकता, जिस पर वह उत्पन्न हुई है।उसके लिए विपरीत क्रिया अपनाना पड़ता हैं।

16.
मनुष्यताका आधार सत्य और सहानुभूति हैं। जिसमें यह दो गुण न हों, उसे मनुष्यता विहीन माना गया है।

17.
जिसका ज्ञान, आचरण में परिवर्तित हो जाता हैं, उस मनुष्य को समाज महापुरुष का स्थान दे देता हैं|

18.
संकट में बल ही रक्षणीय होता हैं लेकिन शांत जीवन के लिए न्याय, निष्पक्षता, सोच-विचार और सहयोग बहुत आवश्यक होता हैं|

19.
श्रेष्ठता का आधार आंतरिक भाव के सद्गुणों पर निर्भर होता हैं। उसका संबंध वाह्य सम्पति या पदवी से नहीं होता।

20.
समय बदल गया हैं। अब तो कहनेको औपचारिकता माना जाता हैं। इसलिए बिना कहें, वह कर दीजिए। इससे मान बढ़ता हैं।

21.
विचार एक सांचाहैं, जिसमें मनुष्य का जीवन ढलता हैं। यदि विचारों में उत्कृष्टता हैं, तो जीवन भी उत्कृष्ट होगा।

22.
अपने आप में सुधार करों और जो चाहों सो पाओं। दूसरों की निंदा करना, अपमानित करना या कुढने से कुछ नहीं होना वाला।

23.
"दुनियाँ की हर चीज़ ठोकर लगने से टूट जाती है। एक "कामयाबी" ही है, जो ठोकर खाकर ही मिलती है।"

24.
भूल करके इंसान सीखता है।इसका ये मतलब नहीं, कि हम भूल पर भूल करते ही जाए और कहे कि हम सीख रहे है!

25.
तर्क और कल्पना में यह अंतर हैं कि तर्क सीमित हैं और कल्पना असीमित।

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