भगवान विष्णु के नाम 'नारायण' और 'हरि'



भगवान विष्णु का नाम
'नारायण' और 'हरि'.

पुराणों में भगवान विष्णु के दो रूप बताए गए हैं। एक रूप में तो उन्हें बहुत शांत, प्रसन्न और कोमल बताया गया है; और दूसरे रूप में प्रभु को अद्भुत बताया गया है, जहां श्रीहरि काल-स्वरूप शेषनाग पर आरामदायक मुद्रा में लेटे हैं। लेकिन प्रभु का रूप कोई भी हो, उनका ह्रदय तो कोमल है और तभी तो उन्हें कमलाकांत और भक्तवत्सल कहा जाता है।

कहा जाता है कि भगवान विष्णु का शांत चेहरा कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति को शांत रहने की प्रेरणा देता है। समस्याओं का समाधान शांत रहकर ही सफलतापूर्वक ढूंढा जा सकता है। शास्त्रों में भगवान विष्णु के बारे में लिखा है-

"शान्ताकारं भुजगशयनं"। पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।

भगवान विष्णु शांत भाव से शेषनाग पर आराम कर रहे हैं। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर मन में ये प्रश्न उठता है कि सर्पों के राजा पर बैठकर कोई इतना शांत कैसे रह सकता है? लेकिन वो तो भगवान हैं और उनके लिए सब कुछ संभव है।

'नारायण'

भगवान विष्णु अपने भक्तों पर हर रूप और हर स्वरूप से कृपा बरसाते हैं और इसीलिए वो जगत के पालनहार कहलाते हैं। भगवान विष्णु का नाम नारायण क्यों है? उनके भक्त उन्हें नारायण क्यों बुलाते हैं?

पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है। पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है। भगवान विष्णु भी जल में ही निवास करते है;. इसलिए "नर" शब्द से उनका नारायण नाम पड़ा ह।. इसका अर्थ ये है कि पानी में भगवान निवास करते हैं; इसीलिए भगवान विष्णु को उनके भक्त 'नारायण' नाम से बुलाते हैं.

"हरि"

भगवान विष्णु को "हरि" नाम से भी बुलाया जाता है। हरि की उत्पत्ति हर से हुई है। ऐसा कहा जाता है कि "हरि हरति पापानि" जिसका अर्थ है कि हरि भगवान हमारे जीवन में आने वाली सभी समस्याओं और पापों को दूर (हरण) करते हैं। इसीलिए भगवान विष्णु को हरि भी कहा जाता है, क्योंकि सच्चे मन से श्रीहरि का स्मरण करने वालों को कभी निऱाशा नहीं मिलती है। कष्ट और मुसीबत चाहें जितनी भी बड़ी हो श्रीहरि सब दुख हर लेते हैं।

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