राधा-कृष्ण की होली.


राधा-कृष्ण की होली.

हिंदू धर्म में होली मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रसिध्द है। बहु-प्रचलित कथा तो होलिका और प्रह्लाद की हैं; किन्तु उसके अतिरिक्त शिव पार्वती सहित अन्यों का भी सन्दर्भ पुराणों में मिलता हैं।

द्वापर काल में “कंस” नाम का एक दुष्ट राजा था।उससे सम्पूर्ण राज्य प्रताड़ित था। कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था। कुछ समय बाद कंस ने अपनी बहन देवकी की शादी वासुदेव के साथ कर दी। इस रिस्ते से वह प्रसन्न भी था। लेकिन एक आकाशवाणी कि “देवकी के आठवीं संतान के हाथों उसकी मृत्यु होगी” से भयभीत होकर उसने देवकी और वासुदेव को एक काल कोठरी में कैद कर लिया। वह आठवी संतान का ही वध करना चाहता था; किन्तु नारदजी के उलझावे में आकर उसने एक-एक करके सत नवजात का वध कर दिया। आठवी संतान के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में होते ही अलोकिक घटना घटी और वासुदेव कृष्ण को लेकर गोकुल में छोड़ आये।

जब इसका पता कंस को चला तो उसने मायवी राक्षसी पूतना को गोकुल गांव के सभी नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दे दिया। पूतना को ये वरदान प्राप्त था कि वो अपनी इच्छानुसार रूप बदल धारण कर सकती थी। पूतना ने गोकल गांव के सभी बच्चों को धीरे-धीरे मारना शुरू कर दिया। इसके बाद एक दिन पूतना, यशोदा- नंद के घर कृष्ण को मारने के लिए भी पहुंच गई।

पूतना ने श्री कृष्ण को मारने के लिए उन्हें अपना जहरीला दूध पिलाने की कोशिश की। इसमें उसका प्राणांत हो गया किन्तु जहरीला दूध पीने के कारण श्री कृष्ण का शरीर गहरे नीले रंग का पड़ गया था। अब सौम्य और सुंदर दिखने वाले कृष्ण नीले रंग के दिखने लगे थे। उनका गोरापन लुप्त हो चुका था।

राधा के रंग से खुद का रंग फीका लगने पर उन्होंने माता यशोदा से सलाह मांगी। माता योशादा ने कृष्ण को सलाह दी कि राधा को वे जिस रंग में देखना चाहते हैं, वह रंग उस पर डाल दे।

इसी सलाह पर कृष्ण, राधा के पास गए और उनके ऊपर रंग उड़ेल दिया। उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा की एकम थी।

यहीं कारण हैं कि मथुरा और बरसाने में होली का त्यौहार बड़े धूम-धाम से मनाया जाने लगा। वर्तमान तो वहां के होली की प्रसिध्दी इतनी हो गई हैं कि विदेश से भी लोग रंगोत्सव देखने आते हैं।

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