हिमालय का
सबसे
बड़ा रहस्य
“भैरवी”.
कौलान्तक पीठ की तंत्र साधनाओं में दीक्षा लेने वाली हर स्त्री को “भैरवी” कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है-माँ शक्ति, शिव की संगिनी। माँ-पारवती को तंत्र ग्रंथों में “भैरवी” कह कर ही शिव भी पुकारते हैं। कोई भी तंत्र मार्गी, स्त्री को भैरवी और पुरुष को भैरव के संबोधन से ही पुकारा जाता है। यहाँ एक बहुत बड़ी कमी थी कि सनातन मान्यता के अनुसार गुरु-शिष्य के बीच विवाह नहीं हो सकता, और एक ही गुरु से दीक्षित स्त्री-पुरुष परस्पर विवाह नहीं कर सकते; क्योंकि वे गुरु भाई और गुरु बहन होते हैं; लेकिन कौलान्तक पीठ का तर्क विपरीत था कि स्त्री पुरुष के धर्म गुरु अलग-अलग होने के कारण गृहस्थी में तनाव रह सकता है। इसलिए सबसे पहले उन्होंने दो विपरीत नियमों को स्वीकार किया। महर्षि अगत्स्य जिनको आधा हिमालय कहा जाता है, के पास समस्या ले जाई गयी और उन्होंने दिया अनूठा समाधान कि गुरु जो जोगी होता है, भी विवाह करने की पूरी स्वतंत्रता रखता है, साथ ही जोगने, भैरवियाँ, साधिकाएँ भी गुरु गोत्र में विवाह कर सकती हैं, लेकिन कुल गोत्र में नहीं, जिसका कारण रक्त का एक होना माना जाता है।
इस प्रकार जब ये सुविधा समाज को मिल गयी तो जाहिर है कि कौलान्तक पीठ में साधकों की भीड़ इक्कट्ठा होने लगी, यह बहुतों को यह सहन न हो सका। प्रचलित कथा के अनुसार कौलाचारियों में एक दिव्य साधिका पैदा हुई; जिसका नाम था अपरा भैरवी, जिसने दस महाविद्याओं को सिद्ध कर कौतुक विद्या में महारत हासिल कर ली और प्रथम पंक्ति जा बैठी। कौतुक विद्या, जिसे आज कल जादूगरी कहा जाता है, जिसका मूल ट्रिक या चातुर्य होता है, को तत्कालीन लोग भली प्रकार नहीं समझ पाते थे, इसलिए जब अपरा भैरवी कौतुक दिखाती थी, तो लोग दांतों तले अंगुलियाँ दवा देते थे। लोगों के मध्य प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच चुकी ये जादूगरनी भैरवी के किस्से, कहानियों में भयंकर रूप धारण करने लगे। इसके जीवन के एक-एक भाग को कहानी में जोड़ा गया,बस यहीं से शुरुआत होती है……भैरवी की।
ऋग्वेद में सांकेतिक रूप से पञ्च चक्रों का विवरण है। इन्ही पञ्च चक्रों में से एक है-भैरवी चक्र। ये चक्र दो प्रकार के हैं। एक चीनाचारा चक्र-पूजा और शैवमतीय चक्र-पूजा। हिमालयों में चीनाचारा चक्र-पूजा लागु हुई। गौर करने वाली बात ये है कि चीन, महाचीन, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के दो गांवों का ही प्राचीन नाम है। वर्तमान चीन से उसका कोई लेना देना है। इस पद्धिति में पंचमकारों को जोड़ा गया। बस यहीं पञ्च मकार वो तत्व हैं, जिनके कारण सात्विक पंथियों को शोर मचाने का अवसर मिल गया, लेकिन ये उनकी सबसे बड़ी मूर्खता थी; क्योंकि उन्होंने भी वास्तविकता से मुह मोड़ लिया। वास्तविकता तो यह थी कि हिमाचल-उत्तराँचल, जम्मू-कश्मीर, नेपाल-तिब्बत के बड़े हिस्सों में भयंकर हिमपात होता था, वहां छः से सात महीनो तक बर्फ गिरी रहती थी, जिस कारण हरियाली का एक पत्ता तक नहीं होता था। ऐसे में इन क्षेत्रों के लोगो ने एक आसान सा उपाय खोज निकाला और वो था कि भेड़ बकरियों को मार कर, उनके मांस पर जीवित रहना और कड़ी ठण्ड और सख्त हवाओं से बचने के लिए आयुर्वेद के कथनानुसार हलकी मदिरा को औषधि के रूप में लेना। तब से ले कर आज तक इन क्षेत्रों में प्रचलित है। यहाँ के बच्चे, महिलाएं, युवा, वृद्ध, सभी सामान रूप से माँसाहारी हैं और मदिरा का सेवन भी करते हैं। पवित्री करण और पूजा के लिए भी मदिरा का ही प्रयोग होता है; क्योंकि भैरवी साधिका/अपरा भैरवी, इन्हीं क्षेत्रों की रहने वाली थी, इसलिए लोगों ने कहानियों में जोड़ दिया कि भैरवी मांस खाती है, मदिरा पीती है, भैरवी मुर्दे पर बैठ कर करती है साधना। ये बात बिलकुल ही गलत है कि भैरवी मुर्दे पर बैठ कर साधना करती है। वास्तव में मरे हुए बकरे की खाल, “याक” नामक हिमालयन प्राणी की खाल हैं, जिसपर बैठ कर भैरव-भैरवी साधना करते थे। याक की सफेद खाल को तंत्र में “शव” कहा जाता है, जिससे बनी शव-साधना। भैरव-भैरवी पूजा में हस्त मुद्राओं और योग मुद्राओं को जोड़ते है-इसीलिए मुद्रा शब्द भी जुड़ गया। प्राकृतिक तौर पर भैरवी का चेहरा मंगोलियन था, जैसा की चीन या जापान अथवा तिब्बत की कोई सुंदरी हो और इन स्थानों में स्त्री को बहु पति रखने की स्वतंत्रता थी। सन 2000 तक हिमाचल के लाहुल स्पीती जिला चंबा और किन्नौर के कुछ भागों में ऐसे परिवार थे, जिनमे एक ही औरत के चार पति थे। इन भागों में लिंगानुपात इतना गिर गया था कि ऐसी नौबत आन पड़ी थी। इस कारण भैरवी पर सभोग करने का कलंक लगा दिया गया। यहाँ यह स्पष्ट है कि हर पत्नी अपने पति से सम्बन्ध बनाती है, तब तो कोई गलत नहीं कहता। भैरवी केवल अपने भैरव से ही सम्बन्ध बनती थी; क्योंकि दोनों पति पत्नी ही थे। बस बताने की कला है, किसी ने कहानी को ऐसे पेश किया कि भैरवी आतंकवादिनी ही लगने लगी। भैरवी को लोक कथाओं ने शीर्ष पर बिठा दिया क्योंकि वे उसके कथित चमत्कारों से डरे हुए थे, लेकिन भैरवी तो एक आम साधिका ही थी। लोगों ने कहा कि भैरवी के पास देवी-देवताओं से भी ज्यादा शक्तियां हैं। धीरे धीरे रहस्य बढ़ता गया। समय के साथ साथ जब भोजन, बस्त्रों की उपलब्धता हो गयी तो, भैरवी ने ये सब छोड़ दिया, और सात्विक भैरवी प्रकाश में आई। लोगों ने यहाँ तक कहा कि भैरवी को देखने वाला जीवित नहीं रहता। रात के घुप्प अन्धकार में बाल फैलाये कोई स्त्री जंगल में अकेली दिख जाये तो कमजोर दिल वाला मरेगा ही, इसमें भैरवी का क्या लेना देना।
हिमालय के क्षेत्रों में आज भी कई सात्विक भैरवियाँ हैं, जिनमे से एक “हेमाद्री” नाम की भैरवी का मिलन कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज से सन 1999के अंत में कुल्लू के निकट मणिकरण के पर्वतों पर हुआ और क्योंकि महायोगी कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर है, इस कारण उनको धर्मानुसार विवाह करने की पूर्ण स्वतंतत्रता है। हेमाद्री ये बात जानती थी और ये भी कि महायोगी युग पुरुष बनने के लक्षणों से भरे हैं, इसलिए वह उनके आप पास रहने लगी, लेकिन महायोगी जी का उद्देश्य साधना था, न कि विवाह। उन्होंने हेमाद्री को, आश्रम में जोकि तब शक्ति समुदाय के नाम से हिमाचल के मण्डी जिला में स्थित था, आने का निमंत्रण दिया। बालीचौकी हेमाद्री का कई बार आना हुआ, कई लोगो ने उसे देखा है। वह कोई हवा में उड़ने वाली नहीं; बल्कि साधारण साधिका थी। अब क्योंकि थी तो भैरवी ही, इसलिए लोगों को डरने के लिए इतना ही काफी था। 2005 के अंत में हेमाद्री, कुल्लू कौलान्तक पीठ आई और महायोगी जी के साथ कई दिनों तक रही। महायोगी जी के हेमाद्री के साथ कई फोटो उपलब्ध हैं। वह महायोगी जी को बहुत स्नेह करती थी और विवाह का प्रस्ताव भी रखा लेकिन महायोगी जी ने किसी कारणवश ये प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। हेमाद्री-भैरवी, पिन पार्वती नाम के दर्रे के निकट साधना करने की बहुत इच्छुक थी और महायोगी जी उस क्षेत्र के नायक है; इसलिए महायोगी जी हेमाद्री को ले कर पिन पारवती की ओर चले गए, जहाँ कई लोगो ने मणिकरण क्षेत्र से आगे उनको देख भी लिया। महायोगी और हेमाद्री के कई महीनो साथ रहने के कारण लोगों ने फिजूल की कई बाते बनाना शुरू कर दिया, जोकि हमारे देश को बिरासत में मिली है। किसी के साथ बहन भी जा रही हो तो नजरें लोगों की गलत ही समझती हैं; क्योंकि मनोवैज्ञानिक रूप से वे ही काम कुंठाओं से ग्रसित हैं। इस कारण महायोगी जी ने उसको मजबूरन आश्रम से चले जाने को कहा…….जिससे हेमाद्री को बहुत दुःख हुआ। वह रोती हुई आश्रम से चली तो गयी लेकिन महायोगी जी को कहा कि हिमालयपुत्र भैरवी होने के कारण मेरा कहीं भी सम्मान नहीं है, लोग जानते ही नहीं कि भैरवी क्या है? तो आप वचन दीजिये कि भैरवी के गुप्त विषय को लोगों तक ले कर आयेंगे। .महायोगी जी ने आश्वासन दिया।
हेमाद्री भैरवी के जाने से महायोगी जी भी कुछ दुखी हुए, जिसका कारण भारतीय मानसिकता का इतना बुरा रूप देखना था। भैरवी के विषय पर महायोगी जी ने अपना शोध शुरू किया और सामने आई सात्विक भैरवी, जो सब बुराइयों से दूर पवित्र साधिका थी। समाज और मीडिया के मन से छवि को हटाना जरूरी था। महायोगी जी ने भैरवी को समझाने के लिए भैरवी साधना के नाट्य रूपांतरण का सहारा लिया। बस इसी दौरान प्रिंट मीडिया में पहली खबर लगी। बहुत ही सुन्दर एवं सटीक पत्रकारों ने महायोगी जी के शोध को जनता के सामने लाने की कोशिश की, लेकिन यही खबर जब इन्टरनेट मीडिया के द्वारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया तक पहुंची तो एक बार फिर भैरवी का रूप बदल गया, सात्विक भैरवी फिर से काल भैरवी हो गयी, शोध की धज्जियाँ उड़ा दी गयी। देश के एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल ने तो महायोगी जी को और उनके शोद्ध को ही गलत करार दे दिया। कुल्लू में कार्यरत एक तथाकथित पत्रकार ने पत्रकारिता का गला घोट कर टीवी चैनल के नाट्य रूपांतरण को सच समझ कर समाचार पत्र में विचित्र अंदाज में छाप दिया। कम दिमाग के इस पत्रकार ने जो पत्रकारिता का बलात्कार किया है, वह सदियों के लिए अमर हो गया। इसके बाद देश के सभी टीवी चैनल भैरवी को बार बार दोहराते रहे; क्योंकि भैरवी एक औरत है, उनको सत्य से कुछ लेना देना नहीं। ऊपर से वो कथित समझदार लोग जिन्होंने हिमालयन कल्चर देखा ही नहीं, लेकिन भैरवी पर कुर्सियों में बैठ कर टीका- टिप्पणी करने लग गए। दिमागी खुजली को मिटाने का अच्छा तरीका मिला गया। इधर महायोगी जी पर हुए झूठे षड़यंत्र के कारण रोष में आ कर आश्रम के कुछ शिष्यों ने महायोगी जी के 3000 पन्नो के शोध पत्र को जला दिया और इस घटना से दूर रहने का आग्रह करने लगे, लेकिन महायोगी भी महायोगी ही हैं। उन्होंने कहा- देखते है कि झूठ जीतता है या सच। अभी सात्विक भैरवी पर एक बार फिर महायोगी जी का शोध शुरू हो गया है। उनका उद्घोष है कि मनहूस और अश्लीलता के आबरण से निकाल कर मैं जगत में सबसे पवित्र भैरवी स्थापित कर दूंगा। हिमालय के माथे पर लगा कलंक मिट जाएगा। स्त्री को धर्म की स्वतंत्रता मिलेगी। भैरवी साधिकाएँ गौरवमय जीवन जी सकेंगी। मीडिया में भी कुछ लोग सच्ची पत्रकारिता करते हैं, वो भैरवी का वास्तविक रूप एक न एक दिन जरूर लोगों तक ले कर आयेंगे और महायोगी का हेमाद्री को दिया बचन भी पूरा होगा तथा हिन्दू धर्म के कुत्सित समझे जाने वाले स्वरुप भैरवी को लोग पवित्रता और सम्मान से देवी की तरह देखेंगे। स्त्रियों का विरोध, धर्म में बंद होगा। स्त्री पुरुष सामान रूप से महासाधानाएं कर सकेंगे। कौलान्तक पीठ ने तो सदियों से नारी को सामान भाव से देखा है। जिसका प्रमाण है, कौलान्तक पीठ की कई परम्पराएँ, जिनमें स्त्रियों को देवी के रूप में पूजा जाता है-एक उदहारण है जिन्दा लक्ष्मी।
देश और सम्प्रदाय में खुशहाली रहे इसके लिए कौलान्तक पीठ, हिमालय के जंगलों में करता है- महालक्ष्मी को जीवित एवं जागृत, जिसे महालक्ष्मी का महाआवाहन भी कहा जाता है, जिसमे स्वेच्छा से कौलान्तक संप्रदाय की साधिकाएँ अपने को नामजद करती है कि उनके माध्यम से महालक्ष्मी को बुलाया जाए। चार महीनो तक कड़ी साधना के बाद वो कन्या जिसमें महालक्ष्मी का आवाहन होना है, जिसे देवकन्या कहा जाता है, तैयार हो पाती है कि साधना पूरी हो। पूर्ण सात्विक निति नियमों का पालन सरल नहीं, फिर सारे काम काज के बाद भी एक साल तक जंगल में रहना, साधना करना आदि आसान नहीं, पर ये प्राचीन मान्यताएं हैं, जिनका पालन पीठाधीश्वर होने के नाते, न चाहते हुए भी महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी को करना ही पड़ता हैं। कथित बुद्धिबादी ये सब कहाँ देख सकते है, जबकि महायोगी नहीं चाहते कि कोई लड़की या स्त्री भैरवी या देवकन्या या लक्ष्मी का रूप धारण करे, लेकिन सनातन को नकार देना भी उनके बसमें नहीं। वो केवल तामसिक तत्वों के विरोधी हैं। बलि प्रथा के सबसे बड़े बिरोधी होने का खामियाजा वो बचपन में ही भुगत चुके हैं। नशा विरोधी कार्यों के कारण उनको लोग समाजसेवी भी मानते हैं, लेकिन भैरवी की हकीकत समझाने के लिए समाज शास्त्र, खगोल शास्त्र, साहित्य, इतिहास, लोक कथाओं का व परम्पराओं का ज्ञान चाहिए, जो कथित कुर्सी और ऐसी (AC) धारियों के पास नहीं। वे तो कुछ किताबों, लेखकों या इंटरनेट पर निर्भर हैं। उनकी हालत देख कर तो दया आती है, पर ज्ञानी होने का अहंकार कहाँ जाता है। इन सबसे सिद्ध होता है कि भैरवी को समझना जहाँ बहुत जटिल हैं, वहाँ महायोगी जी के कार्य काबिले तारीफ है कि वो भैरवी के सबसे शुद्ध रूप को सामने लाने में काफी सफल हुए हैं। मेरे जीवन का ये सौभाग्य है कि मैं हिमालय के सबसे प्रखर योगी जिनको महाक्रोधी मुद्रानायक भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है कि कृत्रिम क्रोध की मुद्राएँ दिखने वाला, महायोगी चक्र राज सत्येन्द्र नाथ जी महाराज, जिनकी थाह पाना किसी के बस में नहीं। जो अपनी प्रशंसा चाहते ही नहीं। बाल्यकाल से तपस्या को प्रमुखता देते हैं। इस सतयुगी योगी के निकट रह कर भी उनको नहीं जाना जा सकता। साधना ही उपाय है। फिलहाल भैरवी तो परदे से बाहर आ ही गयी, आलोचनाएँ तो महापुरुषों की प्रियातामायें होती हैं, वे ही उनको महान बनती हैं। भैरवी कुछ सामने तो आई, लेकिन अभी भी रहस्य तो बना ही है।
(Source-https://www.babamahakaal.com)
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