मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-10
भाग-9 से लगातार.... स्कूल का प्रार्थना स्थल इस समय पूरी तरह फुल था। जो बच्चे कभी स्कूल नहीं आते थे, वह भी आज मौजूद थे। क्योंकि सब को यही जिज्ञासा थी कि देखें आज सनी क्या एनाउंस करने जा रहा है। कुछ लड़कों के चेहरे भी उतरे हुए थे। ये लड़के थे- अमित, सुहेल और गगन। उन्हें यही डर सता रहा था कि कहीं सनी उनकी उस दिन वाली घटना के बारे में तो नहीं बताने वाला है जब उन्होंने उसे मारने की कोशिश की थी। वहां टीचर व प्रिंसिपल सहित सभी मौजूद थे, सिवाय सनी के। प्रिंसिपल बार बार अपनी घड़ी देख रही थीं।
‘‘मैंडम, प्रार्थना का समय हो गया है। क्या मैं प्रार्थना शुरू करवा दूं?’’ सक्सेना सर ने प्रिंसिपल को मुखातिब किया।
‘‘दो मिनट इंतिजार कर लीजिए सक्सेना जी। सनी को आ जाने दीजिए। उसे आज कुछ एनाउंस करना है।’’
‘‘लगता है, वह हमारी छूट का कुछ ज्यादा ही नाजायज़ फायदा उठा रहा है। जब सारे बच्चे आ गये तो वह क्यों नहीं आया अभी तक।’’ सक्सेना सर बड़बड़ाये।
उसी समय सनी वहाँ दाखिल हुआ। उसके साथ साथ एक बन्दर भी चल रहा था।
‘‘अरे सुनील कुमार। तुम इतनी देर से क्यों आये? और क्या ये बन्दर तुम्हारा पालतू है?’’ प्रिंसिपल भाटिया ने पूछा।
‘‘मैं किसी भी प्राणी को अपना पालतू बना सकता हूं।’’ सनी ने अजीब से स्वर में कहा।
‘‘क्या मैं प्रार्थना शुरू करवाऊं?’’ सक्सेना सर ने प्रिंसिपल की ओर देखा।
‘‘जी हां।’’ प्रिंसिपल ने सहमति दी और वहाँ ईश्वर की वंदना शुरू हो गयी। बन्दर बने सनी ने भी अपने हाथ जोड़ लिये थे।
वंदना खत्म हुई। अब प्रिंसिपल सनी यानि सम्राट की तरफ घूमी।
‘‘हाँ सुनील कुमार। तुम्हें जो एनाउंस करना है, तुम कर सकते हो।’’
सनी बने सम्राट ने माइक संभाला और कहना शुरू किया, ‘‘यहाँ पर मौजूद सभी श्रोताओं। अभी आप लोगों ने ईश्वर की वंदना की। मैं आपसे सवाल करता हूं। क्या आप में से किसी ने ईश्वर को देखा है?’’
सभी बच्चों ने नहीं में सर हिलाया।
‘‘अगर तुम लोगों के सामने ईश्वर प्रकट हो जाये तो तुम लोगों को कैसा लगेगा?’’
उसके इस सवाल पर सब उसका मुंह ताकने लगे। फिर एक लड़का बोला, ‘‘अगर हमारे सामने ईश्वर प्रकट हो जाये, तो हम फौरन उसके सामने अपना सर झुका देंगे।’’
उसकी बात पर सब बच्चों ने एक स्वर में ‘हाँ’ कहा।
‘‘तो फिर आओ। मेरे सामने अपना सर झुकाओ। क्योंकि मैं ही हूं ईश्वर। सर्वशक्तिमान इस पूरी सृष्टि का रचयिता।’’
सनी की बात सुनकर वहाँ सन्नाटा छा गया। बच्चों के साथ साथ वहाँ मौजूद टीचर्स भी सनी बने सम्राट का मुंह ताकने लगे थे। जबकि बन्दर बना असली सनी भी हैरत में पड़ गया था।
‘‘यह तुम क्या कह रहे हो सनी?’’ प्रिंसिपल ने हैरत से उसकी ओर देखा।
‘‘अब मैं सनी नहीं हूं। क्योंकि सनी की आत्मा मेरे शरीर से निकल चुकी है और परमात्मा का अंश मेरे शरीर में दाखिल हो चुका है। अब मैं अवतार बन चुका हूं परमेष्वर का।’’ सम्राट के मुंह से निकलने वाली आवाज़ में अच्छी खासी गहराई थी।
‘‘हम कैसे मान लें कि तुम ईश्वर के अवतार हो?’’ अग्रवाल सर कई दिन बाद सनी से मुखातिब हुए।
‘‘जिस प्रकार से मैंने गणित के सवाल हल किये हैं और तुम्हारे शागिर्दों को नाकों चने चबवाए हैं, क्या इससे यह बात सिद्ध नहीं होती कि मैं सर्वशक्तिमान हूं?’’
‘‘यह तो मैं मानता हूं कि तुम्हारे अन्दर कोई दैवी शक्ति मौजूद है। लेकिन तुम्हें ईश्वर तो मैं हरगिज़ नहीं मान सकता।’’ अग्रवाल सर ने टोपी उतारकर अपनी खोपड़ी खुजलाई।
‘‘मैं भी नहीं मानता। मेरा अल्लाह तो वो है जो हर जगह है और किसी को दिखाई नहीं देता। तुम अल्लाह हरगिज नहीं हो सकते।’’ सुहेल बोला।
‘‘लगता है मुझे अपनी शक्तियां दिखानी ही पड़ेंगी।’’ सम्राट बोला। फिर उसने अपनी एक उंगली अग्रवाल सर की ओर उठायी और दूसरी सुहेल की तरफ। दूसरे ही पल दोनों उछल कर हवा में टंग गये। वहां मौजूद सारे बच्चे यह दृष्य देखकर चीख पड़े। सनी बने सम्राट ने फिर इशारा किया और दोनों हवा में चक्कर खाने लगे। इस चक्कर में दोनों एक दूसरे से बार बार टकरा रहे थे। फिर उसने एक और इशारा किया और दोनों धप से ज़मीन पर गिर गये। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे।
‘‘किसी और को मेरे ईश्वर होने में शक हो तो वह बता दे।’’ सनी ने चारों तरफ देखकर कहा।
सब चुप रहे। अगर किसी को शक था भी तो मुंह खोलकर उसे हवा में लटकने का हरगिज़ शौक नहीं था।
शहर के लोकल न्यूज़ पेपर्स और न्यूज़ चैनल्स को ज़बरदस्त मसाला मिल गया था। सब चीख चीखकर सुनील कुमार वर्मा के भगवान बन जाने की कहानी सुना रहे थे। सनी के घर में एक आफत मची हुई थी। उसके माँ बाप यानि मिसेज और मि0 वर्मा बदहवास घर के एक कोने में दुबके हुए थे जबकि उनके घर का बाहरी दरवाज़ा जोर जोर से भड़भड़ाया जा रहा था। बाहर पब्लिक का एक रैला था जो शायद उनका दरवाज़ा तोड़कर अन्दर घुस जाना चाहती थी। आखिरकार कमज़ोर सा दरवाज़ा भीड़ की ताब न लाकर शहीद हो गया और पब्लिक गिरती पड़ती अन्दर दाखिल हो गयी। भीड़ की स्थिति देखकर दोनों और सिमट गये।
‘‘द..देखो, हम कुछ नहीं जानते...हमें...’’ मिसेज वर्मा ने कुछ कहना चाहा लेकिन उसी वक्त मलखान सिंह बोल उठे जो सबसे आगे मौजूद थे।
‘‘भाईयों यही हैं, वह पवित्र हस्तियां, जिन्होंने हमारे भगवान को जन्म दिया है।’’
मलखान सिंह का इतना कहना था कि पब्लिक मि0 एण्ड मिसेज वर्मा पर टूट पड़ी। कोई मि0 वर्मा के हाथ चूम रहा था, तो कोई मिसेज वर्मा के पैरों पर गिरा जा रहा था। सब अपनी अपनी इच्छाएं भी मि0 और मिसेज वर्मा से बयान करने लगे थे ताकि वह अपने भगवान सुपुत्र से सिफारिश कर दें।
‘‘कृपा करके आप सनी से कह दें कि वह मेरा इनकम टैक्स का मामला क्लीयर करवा दे।’’ नंबर दो का रुपया धड़ल्ले से कमाने वाले राजू मियां हाथ जोड़कर बोले जिनके घर में कुछ ही दिन पहले इनकम टैक्स की रेड पड़ी थी।’’
‘‘अबे ओये ऊपर वाला तेरे भेजे को खराब करे। तू भगवान को सनी सनी कहकर पुकारता है मानो वह तेरा खरीदा हुआ है।’’ मलखान सिंह राजू मियां की गर्दन पकड़ कर दहाड़े।
‘‘तो फिर हम सनी को और क्या बोलें?’’ मिनमिनाती आवाज में राजू मियां ने पूछा।
‘‘ओये तू अगर सनी को सनी देवता कह देगा तो क्या तेरी ज़बान घिस जायेगी?’’
‘‘लेकिन इससे तो कन्फ्यूज़न हो जायेगा, मलखान भाई।’’ पंडित बी.एन.शर्मा पीछे से बोले।
‘‘ओये कैसा कन्फ्यूज़न पंडित।’’ मलखान ने इस बार बी.एन.शर्मा की तरफ देखकर आँखें तरेरीं।
‘‘हम लोग एक शनि देवता की पहले से ही पूजा करते हैं। हम इन्हें भी सनी देवता कहने लगे तो लोग डाउट में पड़ जायेंगे कि हम शनि देवता की बात कर रहे हैं या सनी देवता की।’’
‘‘हाँ यह बात तो है।’’ मलखान जी सर खुजलाने लगे। फिर बोले, ‘‘आईडिया। हम इन्हें पूरे नाम से बुलाते हैं यानि भगवान सुनील कुमार वर्मा।’’
‘‘हाँ यह ठीक है।’’ पंडित बी.एन.शर्मा ने सर हिलाया।
‘‘तो फिर बोलो तुम सब। भगवान सुनील कुमार वर्मा की - जय हो।’’ अब मलखान सिंह जी बाकायदा वहाँ सुनील कुमार वर्मा की जय जयकार कराने लगे थे।
लेकिन जितनी ज्यादा ये लोग जय जयकार करते थे, मिस्टर और मिसेज वर्मा उतना ही ज्यादा अपने में दुबके जा रहे थे।
क्रमशः
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