(लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)
श्रीमद्भागवत महापुराण:
प्रथम स्कन्धः सप्तम
अध्यायः श्लोक 33-48
का हिन्दी अनुवाद
धर्मवेत्ता पुरुष असावधान, मतवाले, पागल, सोये हुए, बालक, स्त्री, विवेकज्ञानशून्य, शरणागत, रथहीन और भयभीत शत्रु को कभी नहीं मारते। परन्तु जो दुष्ट और क्रूर पुरुष दूसरों को मारकर अपने प्राणों का पोषण करता है, उसका तो वध ही उसके लिये कल्याणकारी है; क्योंकि वैसी आदत को लेकर यदि वह जीता है तो और भी पाप करता है और उन पापों के कारण नरकगामी होता है।
फिर मेरे सामने ही तुमने द्रौपदी से प्रतिज्ञा की थी कि ‘मानवती! जिसने तुम्हारे पुत्रों का वध किया है, उसका सिर मैं उतार लाउँगा’। इस पापी कुलांगार आततायी ने तुम्हारे पुर्त्रों का वध किया है और अपने स्वामी दुर्योधन को भी दुःख पहुँचाया है। इसलिये अर्जुन! इसे मार ही डालो। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के धर्म की परीक्षा लेने के लिये इस प्रकार प्रेरणा की, परन्तु अर्जुन का हृदय महान् था। यद्यपि अश्वत्थामा ने उनके पुत्रों की हत्या की थी, फिर भी अर्जुन के मन में गुरुपुत्र को मारने की इच्छा नहीं हुई।
इसके बाद अपने मित्र और सारथि श्रीकृष्ण के साथ वे अपने युद्ध-शिविर में पहुँचे। वहाँ अपने मृत पुत्रों का शोक करती हुई द्रौपदी को उसे सौंप दिया। द्रौपदी ने देखा कि अश्वत्थामा पशु की तरह बाँधकर लाया गया है। निन्दित कर्म करने के कारण उसका मुख नीचे की ओर झुका हुआ है। अपना अनिष्ट करने वाले गुरुपुत्र अश्वत्थामा को इस प्रकार अपमानित देखकर द्रौपदी का कोमल हृदय कृपा से भर आया और उसने अश्वत्थामा को नमस्कार किया।
गुरुपुत्र को इस प्रकार बाँधकर लाया जाना सती द्रौपदी को सहन नहीं हुआ। उसने कहा- ‘छोड़ दो, इन्हें, छोड़ दो। ये ब्राह्मण हैं, हम लोगों के अत्यन्त पूजनीय हैं। जिनकी कृपा से आपने रहस्य के साथ सारे धनुर्वेद और प्रयोग तथा उपसंहार के साथ सम्पूर्ण शस्त्रास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया है, वे आपके आचार्य द्रोण ही पुत्र के रूप में आपके सामने खड़े हैं।
उनकी अर्धांगिनी कृपी अपने वीर पुत्र की ममता से ही अपने पति का अनुगमन नहीं कर सकीं, वे अभी जीवित हैं। महाभाग्यवान् आर्यपुत्र! आप तो बड़े धर्मज्ञ हैं। जिस गुरुवंश की नित्य पूजा और वन्दना करनी चाहिये, उसी को व्यथा पहुँचाना आपके योग्य कार्य नहीं है। जैसे अपने बच्चों के मर जाने से मैं दुःखी होकर रो रही हूँ और मेरी आँखों से बार-बार आँसू निकल रहे हैं, वैसे ही इनकी माता पतिव्रता गौतमी न रोयें।
जो उच्छ्रंखल राजा अपने कुकृत्यों से ब्राह्मण कुल को कुपित कर देते हैं, वह कुपित ब्राह्मण कुल उन राजाओं को सपरिवार शोकाग्नि में डालकर शीघ्र ही भस्म कर देता है’।
क्रमश:
साभार krishnakosh.org
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