मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-34
भाग-33 से लगातार.... ‘‘नहीं माँ, मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। पूरी दुनिया धोखा दे दे लेकिन माँ कभी नहीं धोखा देती।’’ वह उसकी तरफ बढ़ा, लेकिन उसी समय पास के एक घने पेड़ से कोई धप से ज़मीन पर कूदा।
सनी ने देखा, यह निहायत काला भुजंग मोटा सा व्यक्ति था, जिसके सिर पर एक सींग भी मौजूद था। इस कुरूप व्यक्ति के चेहरे पर निहायत वीभत्स मुस्कुराहट सजी हुई थी।
‘‘किधर जा रहा है-रे। बहुत बड़ा धोखा खायेगा तू।’’ वह राक्षस अपनी खौफनाक मुस्कुराहट के साथ बोला।
‘‘राक्षस दूर हो जा, यहाँ से। मैं अपने बेटे को इस जगह से निकालने के लिये आयी हूं।’’ उसकी माँ ने गुस्से से उस वीभत्स राक्षस को लताड़ा।
‘‘तू इसे निकालेगी या और फंसा देगी। इसे यहाँ से सुरक्षित सिर्फ मैं निकाल सकता हूं।’’ फिर वह सनी से मुखातिब हुआ, ‘‘देख क्या रहा है। मेरे साथ आ। मैं तुझे यहाँ से निकालता हूं।’’
वह कुरूप राक्षस सनी की तरफ बढ़ा। सनी के दिमाग़ की चूलें इस वक्त हिली हुई थीं। उसका मन कर रहा था कि अपने सिर के सारे बाल नोच डाले।
‘‘वहीं रूको। मैं खुद ही यहाँ से बाहर निकल जाऊंगा।’’ उसने चीख कर कहा और उस संरचना की ओर तेज़ तेज़ कदमों से जाने लगा जिसे नेहा ने दरवाज़े का नाम दिया था। वह उस विशाल संरचना के सामने पहुंचा और उसमें किसी दरवाज़े का निशान ढूंढने की कोशिश करने लगा। लेकिन उस संरचना में कहीं कोई दरार भी नहीं दिखाई दी।
उसने घूमकर देखा। नेहा, उसकी माँ और वह राक्षस अपनी जगह चुपचाप खड़े, उसी की तरफ देख रहे थे। उसने अपने हाथ में पकड़े ज़ीरो को उस संरचना से टच कराया। टच कराते ही उस संरचना से बादलों की गरज जैसी आवाज़ पैदा हुई जो कि शब्दों में बदल गयी।
उस संरचना से आने वाली आवाज़ कह रही थी, ‘‘मेरे अन्दर आने के लिये तुम्हें उन तीनों में से एक को साथ लाना पड़ेगा।’’ इतना कहकर आवाज़ बन्द हो गयी। सनी ने दोबारा अपना ज़ीरो उससे टच कराया और संरचना ने फिर यही शब्द दोहरा दिये।
क्रमशः
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