मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-20
भाग-19 से लगातार.... पहाड़ भी अजीब से थे। बिल्कुल सीधे सपाट। ऐसा लगता था किसी ने पत्थर के बीसियों विशालकाय त्रिभुज बनाकर एक दूसरे से जोड़ दिये हों। उनका रंग भी अजीब था। कुछ संगमरमर जैसे सफेद थे और बाकी कोयले जैसे काले। काफी देर देखने के बाद भी सनी को उनके बीच कोई ऐसी दरार नज़र नहीं आयी जिसे रास्ता बनाकर वह उन पहाड़ों में घुस सकता था।
‘लगता है यहाँ भी कोई गणितीय पहेली छुपी हुई है।’ सनी ने मन में सोचा। और गौर से पहाड़ों को देखने लगा। उसे उनके रंग में ही कोई खास बात छुपी मालूम हो रही थी। लेकिन वह खास बात क्या है, उस तक उसका दिमाग नहीं पहुंच पा रहा था। वह घूम घूमकर पहाड़ों की उन काली व सफेद त्रिभुजाकार रचनाओं को देख रहा था, जिनके बीच से आगे जाने का कहीं कोई रास्ता नहीं था। तमाम काले व सफेद त्रिभुज कुछ इस तरह साइज़ व आकार में एक जैसे थे कि उन्हें अगर एक के ऊपर एक रख दिया जाता तो सब बराबर से फिट हो जाते। अचानक उसके ज़हन में एक झमाका हुआ और उसे अग्रवाल सर की एक बात याद आ गयी जो उन्होंने निगेटिव नंबरों के अध्याय की शुरूआत करते हुए बतायी थी।
‘‘अगर बराबर की निगेटिव व पाज़िटिव संख्या ली जाये तो उसका जोड़ हमेशा ज़ीरो होता है।’’ अगवाल सर का ये जुमला लगातार उसके दिमाग में उछलने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि पहाड़ों के ये त्रिभुज भी निगेटिव व पाज़िटिव ही मालूम हो रहे थे। और वह भी बराबर के साइज़ के। अगर उन्हें बराबर से एक दूसरे से मिला दिया जाये तो? लेकिन फिर उसे अपनी इस सोच पर हंसी गयी। भला इन विशालकाय पहाड़ों को कौन हिला सकता था। लेकिन फिर उसके दिमाग में एक और विचार आया। आजकल के ज़माने में मात्र कुछ स्विच दबाकर भारी भरकम मशीनों को कण्ट्रोल किया जाता है, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इन पहाड़ों में रास्ते के लिये भी कोई स्विच दबाना पड़ता हो।
अब वह एक बार फिर पहाड़ के आसपास चक्कर लगाने लगा। उसे तलाश थी, किसी स्विच की।
थोड़ी देर वह पहाड़ों के ही समान्तर एक दिशा में चलता रहा। इससे पहले वह दूसरी दिशा में काफी दूर तक जा चुका था। फिर एकाएक वह ठिठक गया। यह एक छोटा सा चबूतरा था।
क्रमशः
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