मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-25
भाग-24 से लगातार.... जैसे ही छल्ला उन खतरनाक प्राणियों के पास पहुंचा, रोशनी का हल्का सा झमाका हुआ और वहाँ से साँप बिच्छू व दूसरे कीड़े मकोड़े इस तरह गायब हो गये मानो हवा उन्हें निगल गयी। ये देखते ही सनी जोश में भर गया और छल्ले को चारों तरफ घुमाने लगा। हाल के ज़हरीले कीड़े छल्ले के सम्पर्क में तेज़ी से आने लगे और उसी तेज़ी के साथ हवा में विलीन होने लगे। अब सनी पूरे हॉल में दौड़ दौड़कर उन ज़हरीले प्राणियों को खत्म कर रहा था।
थोड़ी ही देर में पूरा हॉल उन ज़हरीले प्राणियों से साफ हो चुका था। सुनील कुमार ने चैन की गहरी साँस अपने फेफड़ों के अन्दर खींची और वहीं फर्श पर बैठ गया। लेकिन उसका ये चैन ज़्यादा देर तक क़ायम नहीं रह सका। क्योंकि उसकी आँखों ने हॉल की दीवारों के उस खतरनाक हरकत को देख लिया था। हॉल की चारों तरफ की दीवारे आहिस्ता आहिस्ता अन्दर की तरफ सिमट रही थीं। उनकी ये क्रिया शायद उसी समय शुरू हो गयी थी जब वह छल्ला छत से अलग हुआ था।
हालांकि दीवारों के खिसकने की रफ्तार बहुत ही धीमी थी लेकिन फिर भी वह वक्त आ ही जाता जब वह दीवारें आपस में मिल जातीं। और फिर उनके बीच सुनील कुमार का जो हाल होता उसे कोई भी समझ सकता था।
उसने किसी दरवाज़े की तलाश में नज़रें दौड़ायीं। लेकिन अब हॉल में कहीं कोई दरवाज़ा नज़र नहीं आ रहा था। यहाँ तक कि वह जिस दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ था, वह भी गायब था। चारों तरफ सिर्फ सपाट दीवारें थीं जिनमें कहीं कोई खिड़की दरवाज़ा नहीं था। उसका मन हुआ कि घुटनों में सर देकर बैठ जाये और ज़ोर ज़ोर से फूट फूटकर रोने लगे।
लेकिन फिर यह सोचकर उसकी हिम्मत बंधी कि जिस तरह पिछली बहुत सी मुसीबतों से बचने का तरीका उसे सूझ गया था, उसी तरह इस नयी मुसीबत से बचने का भी कोई न कोई तरीका निश्चित ही होना चाहिए था। और उस तरीके को ढूंढकर वह इस मुसीबत को भी दूर कर सकता था। एक बार फिर उसने गौर से चारों तरफ देखना शुरू किया।
लेकिन इस बार देर तक देखने के बावजूद उसे कोई ऐसा क्लू नहीं मिला, जिसके सहारे वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने की तरकीब तक पहुंच सकता था। चारों दीवारें सपाट थीं, जिनपर कहीं कोई निशान नहीं था और न ही फर्श पर ही कोई निशान मौजूद था। छत पर फानूस पहले की तरह मौजूद थे। फिर उसके दिमाग में एक विचार आया। अगर दीवारें पास आयेंगी तो छत पर लटके फानूसों का क्या होगा?
क्रमशः
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