देवी-देवता से
मिलने वाले सन्देश.
जैसे ही वर्षाकाल समाप्त होने के करीब होता हैं, भारत में देवी देवताओ के उत्सव मनाये जाते हैं। जैसे महाराष्ट्र में गणेश, बंगाल और उत्तर भारत में दुर्गा, दक्षिण में कार्तिकेय और भी अन्य देवता होते हैं। विचारणीय यह हैं कि इनके रूप ऐसे विचित्र क्यों बनाये गये?
आजकल बच्चे भी यह सवाल पूछ लेते हैं।
सवाल उचित भी हैं।
क्या देवता साधारण मनुष्य की तरह नहीं दिखाए जा सकते?
विज्ञान और टेक्नोलॉजी पर पली आज की पीढ़ी के लिये ये कहानियाँ किस तरह प्रस्तुत की जाये?
आज के बच्चे अगर पूछे की आदमी के शरीर पर हाथी का सिर कैसे रह सकता हैं, तो क्या जबाब होगा?
मेडिकल साइंस के अनुसार आदमी के धड पर हाथी का सिर जिन्दा रह ही नहीं सकता।
यह सौ फीसदी सच हैं। क्या बच्चो को हम आज भी विश्वाश करना सिखाये या उनमें वैज्ञानिक दृष्टीकोण के बीज आस्था सहित डाले?
सही जबाब तो यह होगा कि ये सब प्रतीक हैं, गहरी बात कहने का पुराने लोग का अंदाज था।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताफ जुंग ने देवताओ के प्रतीक का अर्थ समझाया हैं। उसने पाया कि मन के कई गहरे तल होते हैं, जिन्हें वह सामूहिक अवचेतन कहता हैं। यह सामूहिक अवचेतन शब्दों में नहीं सोचता, इसकी भाषा चित्रमय होती हैं। मानव के इतिहास में हम जितने पीछे जायेंगे, उतनी चित्रमय भाषा और प्रतीको का प्रयोग पायेगे। मन में विचार या भाव पैदा हो, इससे पहले चित्र उभरते हैं। प्राचीन मनुष्य ने जब किन्ही नैसर्गिक शक्तिओ को अनुभव किया होगा; तब उसने उनकी छवि बनाई होगी। यह छवि ही आगे चलकर, देवता बनी। इस तरह हर देश के इतिहास में अलग अलग मूर्तिया हैं। गनेश को ग्रीस या इजिप्ट में नहीं पाया जायेगा, क्योकि वहाँ का “समूह-मन” अलग हैं|
गणेश हैं, विद्या के देवता। उनका सिर हाथी का और वाहन चूहा बताने का अभिप्राय, यह हैं कि बुध्दी का प्रभाव विशाल होता हैं, इसलिए बुध्दी की विशालता के लिए बड़ा सिर के रूप में हाथी के सिर को दर्शाया गया। बुध्दी में तर्क-कुतर्क दोनों होते हैं और चूहा कुरेदने वाला जीव हैं। मन के भीतर कुरेदने-वाले ‘संदेह’के प्रतीक में चूहां हैं। बुध्दिजीवी आदमी के भीतर संदेह, तर्क और कुतर्क सदा चूहे की तरह कुतरते रहते हैं। बुध्दी अगर संदेह पर खड़ी हो तो कभी प्रज्ञा नहीं बन पायेगी, उससे कभी शांति नहीं मिलेगी।
ऐसे सभी प्रतीकों को समझा जाय, तो नइ पीढ़ी प्रतीको के रहस्य समझेंगे। इस मनोवैज्ञानिक समझ को विकसित कर लोगो को सिखाया जाये, तो नई पीढ़ी भ्रम-मुक्त होकर देवताओ की पूजा करने के साथ ही उनकी शक्ति को अपने भीतर जगाने को उन्मुख हो जायेगी।
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