कन्या पूजन.


न्या पू.

सनातन धर्मग्रन्थों में कन्या-पूजन को नवरात्र-व्रत का अनिवार्य अंग बताया गया है। छोटी बालिकाओं में देवी दुर्गा का रूप देखने के कारण श्रद्धालु उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

दो वर्ष की कन्या को “कुमारी” कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।

तीन वर्ष की कन्या “त्रिमूर्ति” मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।

चार वर्ष की कन्या “कल्याणी” के नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पांच वर्ष की कन्या “रोहिणी” कही जाती है। रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।

छ:वर्ष की कन्या “कालिका” की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।

सात वर्ष की कन्या “चण्डिका” के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।

आठ वर्ष की कन्या “शाम्भवी” की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है।

नौ वर्ष की कन्या "दुर्गा" की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।

दस वर्ष की कन्या “सुभद्रा” कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।

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