मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-7
भाग-6 से लगातार.... उधर बंदर बना सनी अब शहर की सीमा में प्रवेष कर चुका था। यहाँ आकर उसने राहत की साँस ली। ‘चलो जंगली जानवरों से पीछा छूटा। यहाँ पर सिर्फ कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं। अब कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं।’
लेकिन यह क्या? कुत्ते तो भौंकते हुए उसी की तरफ दौड़े चले आ रहे थे। उसे याद आ गया कि उसका जिस्म बंदर का है। और कुत्ते बंदरों के अव्वल दर्जे के दुश्मन होते हैं।
एक बार फिर उसे दौड़ जाना पड़ा। उसने छलांग लगाई और एक मकान का पाइप पकड़कर जल्दी जल्दी ऊपर चढ़ने लगा। थोड़ी ही देर में वह मकान की छत पर था।
अब वहाँ मौजूद पानी की टंकी पर चढ़कर वह चारों ओर नजर कर रहा था। उसे एरिया कुछ जाना पहचाना महसूस हुआ। फिर इस घर को भी वह पहचान गया। यह तो नेहा का घर है। एक वही तो थी पूरे क्लास में जो उससे हमदर्दी रखती थी।
अब उसे थोड़ा इत्मिनान हुआ। वह नेहा को पूरी बात बतायेगा। शायद वह उसकी कुछ मदद कर सके।
सनी को किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी। उसने झांककर देखा, नेहा गीले कपड़ों को धूप में डालने के लिए ऊपर आ रही थी।
‘‘काम बन गया। लगता है, ऊपर वाला मेरे ऊपर मेहरबान है।’’ उसने खुश होकर सोचा।
नेहा ऊपर आयी और फिर वहाँ लगे हुए तार पर कपड़े डालने लगी। अभी उसकी नजर बंदर उर्फ सनी पर नहीं पड़ी थी।
‘‘हैलो नेहा! मैं सनी हूँ। प्लीज मेरी मदद करो।’’ सनी बोला। ये अलग बात है कि उसके मुंह से सिर्फ बंदरों वाली खों खों ही निकल पायी।
नेहा ने घूमकर देखा। और फिर जो कुछ हुआ, वह सनी के लिए अप्रत्यासित था।
नेहा ने एक जोर की चीख मारी और मम्मी-बंदर-मम्मी-बंदर रटती हुई सीढ़ियों से नीचे भागी।
‘‘बंदर-किधर है, बंदर..’’ सनी भी घबरा कर इधर उधर देखने लगा। फिर उसे याद आया कि बंदर तो वह खुद ही बना बैठा है।
‘‘तो नेहा भी मुझे पहचान नहीं पायी।’’ अफसोस के साथ उसने सोचा।
‘‘किधर है बंदर!’’ नीचे से एक दहाड़ सुनाई दी। सनी ने घबराकर देखा। नीचे नेहा का बड़ा भाई हाथ में मोटा डंडा लिए नेहा से पूछ रहा था। सनी की रूह फना हो गई। उसने वहाँ से फौरन निकल लेना ही उचित समझा।
फिर एक लम्बी छलांग ने उसे दूसरे मकान की छत पर पहुँचा दिया। यहाँ पहुंचकर वह खुश हो गया। क्योंकि चारों तरफ मूंगफलियां बिखरी हुई थीं। दरअसल उन्हें सुखाने के लिए वहाँ रखा गया था। सनी को जोरों की भूख लग रही थी, लिहाजा उसने आव देखा न ताव और मुट्ठी भर भर कर मूंगफलियां चबानी शुरू कर दीं।
अभी उसने दो तीन मुट्ठियां ही मुंह में डाली थीं कि कोई चीज बहुत जोरों से उसके पैर से टकराई। दर्द की एक जोरदार टीस में वह सी करके रह गया। फिर घूमकर देखा तो थोड़ी दूर पर एक लड़का खड़ा हुआ था, हाथ में गुलेल लिए हुए।
‘‘आओ बच्चू, ये गुलेल मैंने तुम लोगों के लिए ही तैयार की है।’’ कहते हुए लड़का गुलेल में फिर से कंकड़ी लगाने लगा।
अब सनी के पास एक बार फिर भागने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
उस समय क्लास में गुप्ता जी अंग्रेजी पढ़ा रहे थे, जब चपरासी ने वहाँ प्रवेश किया। गुप्ता जी ने पढ़ाना छोड़कर प्रश्नात्मक दृष्टि से चपरासी को देखा।
‘‘मास्टर साहब, सनी को प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।’’
सनी बने सम्राट ने हैरत से चपरासी को देखा। भला प्रिंसिपल को उससे क्या काम पड़ गया था।
‘‘सनी!’’ गुप्ता जी ने सनी को पुकारा, ‘‘जाओ, तुम्हें प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।’’
सनी अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ। एक ही जगह बैठे अमित गगन और सुहेल ने एक दूसरे को राज़भरी नज़रों से देखा।
क्रमशः
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