मायावी गिनतियां. (रोचक कथा) (जीशान जैदी) भाग-41


मायावी गिनतियां.  (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-41
भाग-40 से लगातार....

इससे पहले कि वह नुकीले डंक सनी के शरीर को पंचर कर देते, सनी का मददगार यानि वह राक्षस या फरिश्ता तेज़ी से सामने आया और उन मच्छरों को दोनों हाथों से मारने लगा। जैसे ही उसका हाथ किसी मच्छर से टकराता था एक चिंगारी के साथ वह मच्छर गायब हो जाता था।

‘‘वेरी गुड!’’, सनी चीखा, ‘‘सबको खत्म कर दो।’’

‘‘मैं तुम्हें ज़्यादा देर नहीं बचा सकता। इससे पहले कि ये बहुत ज़्यादा बढ़ जायें तुम्हें इनका स्रोत ढूंढकर नष्ट करना होगा।’’ हवा में हाथ लहराते हुए उस फरिश्ते ने भी चीखकर कहा।

सनी ने देखा मच्छरों की संख्या धीरे धीरे बढ़ रही थी। और वाकई में अगर उनके निकलने को रोका न जाता तो थोड़ी ही देर में ये इतने ज़्यादा हो जाते कि उनसे बचना नामुमकिन हो जाता। फरिश्ते के जिस्म से निकलती रोशनी में वह देख रहा था कि ये मच्छर सामने मौजूद एक दीवार के सूराखों से निकल रहे हैं। ये सूराख भी टेनिस की बॉल जितनी गोलाई के थे और संख्या में बीसियों थे।

‘‘मैं क्या कर सकता हूं? मेरा ज़ीरो भी तुमने ले लिया।’’ सनी हाथ मलते हुए बोला।

‘‘अकेले ज़ीरो से इन मच्छरों का कुछ भला नहीं होने वाला था। यहाँ तुम्हें कोई और तरकीब लगानी होगी।’’

‘‘कौन सी तरकीब?’’

‘‘मैं नहीं जानता। तुम्हें अपनी अक्ल लगानी होगी। लेकिन जो कुछ करना है, जल्दी करो।’’ फरिश्ता मच्छरों को तेज़ी से मारते हुए फिर चीखा। सनी ने अपनी अक्ल लगानी शुरू की और सूराखों पर अपनी नज़रें गड़ा दीं। सूराख काफी ज़्यादा संख्या में थे।

‘अगर उन्हें बन्द कर दिया जाये तो?’ सनी ने सोचा और कमरे में इधर उधर नज़र दौड़ाने लगा कि शायद कोई चीज़ उन सूराखों को बन्द करने के लिये मिल जाये। उसे निराश नहीं होना पड़ा। क्योंकि कमरे में स्टेज के पास ही लकड़ी के ढेर सारे गोल ढक्कन पड़े हुए थे जो उन सूराखों के ही साइज़ के थे।

‘अरे वाह! सूराखों को बन्द करने के औज़ार तो यहीं पड़े हैं।’ सनी ने खुश होकर आठ दस ढक्कन एक साथ उठा लिये और मच्छरों से बचते बचाते उन सूराखों की ओर बढ़ा। उसने पहला ढक्कन एक सूराख पर फिट किया। लेकिन यह क्या? हाथ हटाते ही वह ढक्कन नीचे गिर गया था क्योंकि उसे धक्का मारते हुए उसी समय कई मच्छर बाहर निकल आये थे।

‘क्या इन ढक्कनों को लगाने की भी कोई ट्रिक है?’ सनी सोचने लगा। यहाँ पर खड़े रहकर सोचना काफी मुश्किल था क्योंकि मच्छर लगातार डिस्टर्बेंस पैदा कर रहे थे। वह सूराखों से निकलते हुए मच्छरों को गौर से देखने लगा। और उसी समय उसपर एक नया राज़ खुला।

क्रमशः

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