मायावी गिनतियां. (रोचक कथा) (जीशान जैदी) भाग-11


मायावी गिनतियां.  (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-11
भाग-10 से लगातार....

सनी यानि सम्राट को ईश्वर मानने वालों की संख्या धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी। यह देखकर प्रशासन की आँखों में चिन्ता के भाव तैरने लगे थे। क्योंकि इस नये भगवान को मानने वालों और पुराने भगवानों को मानने वालों के बीच झगड़ों के आसार भी बढ़ते जा रहे थे। पुराने धर्मों को मानने वाले इस नये धर्म के भगवान को पाखंडी बता रहे थे। जवाब में सम्राट के अनुयायी उन्हें मरने मारने पर उतारू थे। हालांकि अभी कोई गंभीर घटना नहीं हुई थी। लेकिन आगे क्या होगा इसकी आशंका सभी को थी।

पुलिस विभाग ने इस नये भगवान की तफ्तीश के लिये एक दरोगा को दो सिपाहियों के साथ भेजा।

‘‘यह तुमने क्या नाटकबाज़ी फैला रखी है!’’ सनी बने सम्राट के सामने पहुंचकर दरोगा ने आँखें तरेरीं। सम्राट इस समय ऊंचे चबूतरे पर विराजमान था। असली सनी बन्दर के जिस्म में उसकी बगल में बैठा हुआ था। अगर वह मानवीय शक्ल में होता तो कोई भी उसकी चेहरे की परेशानी आसानी से देख लेता। जिस चबूतरे पर वे लोग मौजूद थे, उसके आसपास लगभग सौ लोगों का मजमा लगा हुआ था जो भगवान सुनील कुमार वर्मा की जय जयकार कर रहे थे।

‘‘यहाँ कोई नाटक नहीं फैला हुआ है। यहाँ तो शांति का साम्राज्य फैला हुआ है।’’ सम्राट ने शांत स्वर में जवाब दिया।

‘‘कौन शांति? सिपाहियों, देखो शांति किधर गायब है। ... दोनों को ले चलकर हवालात में बन्द कर दो।’’ दरोगा सिपाहियों की तरफ घूमा।

सिपाही तुरंत शांति की तलाश में जुट गये।

उधर सम्राट का प्रवचन जारी था, ‘‘शांति, सुख और चैन की तलाश हर एक को होती है। लेकिन शांति तो तुम्हारे मन के अन्दर ही बसती है। लेकिन तुम उसे पहचान नहीं पाते। ठीक उसी तरह जैसे तुम लोगों को जीवन भर ईश्वर की तलाश होती है। लेकिन अगर ईश्वर सामने आ जाये तो तुम उसे पहचान नहीं पाते और दीवाने बनकर इधर उधर चकराने लगते हो। ऐ दीवानों मुझे पहचानो। मैं ही ईश्वर हूं। मैं ही हूं इस सृष्टि का निर्माता।’’

‘‘इस दीवाने को ले चलकर हवालात में बन्द कर दो। जब दो डंडे पड़ेंगे तो अक्ल ठिकाने आ जायेगी। ससुर ईश्वर बन रहा है।’’ दरोगा ने व्यंगात्मक भाव में कहा। सिपाही सम्राट को पकड़ने के लिये आगे बढ़े लेकिन सम्राट के भक्तों ने सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया।

‘‘उन्हें मत रोको। मेरे पास आने दो।’’ सम्राट ने शांत स्वर में कहा। सिपाही आगे बढ़े और जैसे ही उन्होंने सम्राट को हाथ लगाया। बुरी तरह उछलने कूदने लगे और साथ ही इस तरह हंसने लगे मानो कोई उन्हें गुदगुदा रहा है। पब्लिक और दरोगा हैरत से उन्हें देख रहे थे।

‘‘अबे उल्लुओं। ये क्या कर रहे हो तुम लोग। जल्दी से इसे पकड़ो और हवालात में बन्द करो।’’ दरोगा चीखा। लेकिन सिपाहियों ने मानो उसकी बात ही नहीं सुनी। वे उसी प्रकार उछलने कूदने और कहकहा मारने में व्यस्त थे।

‘‘नर्क में जाओ तुम लोग। मैं ही कुछ करता हूं।’’ दरोगा इस बार खुद सम्राट को गिरफ्तार करने आगे बढ़ा। सम्राट शांत भाव से उसे देख रहा था। जैसे ही दरोगा ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया, सम्राट ने उसके चेहरे पर एक फूंक मारी। फौरन ही दरोगा दो कदम ठिठक कर पीछे हट गया। अचानक ही उसके चेहरे के भाव बदल गये। चेहरे की सख्ती गायब हो गयी और उसकी जगह ऐसा लगा मानो उसपर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। चेहरा कुछ इसी तरह उदास हो गया था।

फिर उसकी आँखें छलछला कर निर्मल धारा भी बहाने लगीं। और उसके मुंह से भर्राई हुई आवाज़ में निकला, ‘‘माँ, तुम कहां हो। मुझे छोड़कर किधर खो गयीं तुम। देखो तुम्हारी याद में तुम्हारे बबलू का क्या हाल हो गया है।’’

सम्राट के पास बैठे भक्त हैरत से दरोगा को देखने लगे थे।

‘‘बचपन में इसकी माँ एक मेले में गुम हो गयी थी। आज उसे उसकी याद आ रही है।’’ सम्राट ने बताया।

‘‘लेकिन अभी अचानक इसे कैसे माँ की याद आ गयी?’’ एक भक्त ने पूछा।

‘‘इसलिए क्योंकि अभी मैंने इसको इसकी माँ की आत्मा के दर्शन कराए हैं।’’

‘‘अरे वाह। भगवान, कृपा करके मुझे अपने बाप की आत्मा के दर्शन करा दीजिए। मुझे उनसे उस गड़े धन का पता पूछना है, जो उसने ज़मीन में कहीं छुपा दिया था। और फिर हमें बताने से पहले ही उसका दम निकल गया था।’’ भक्त ने आशा भरी नज़रों से भगवान की ओर देखा।

‘‘इसके लिये तुम्हारे बाप की आत्मा से बात करने का कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि करारे नोटों की शक्ल में जो धन उसने गाड़ा था, वह पूरे का पूरा दीमक चाट गयी है।’’ सम्राट ने भक्त की आशाओं पर तुरंत आरी चला दी।

उधर दरोगा अपनी माँ की याद में एक कोने में गुमसुम बैठ गया था, अतः अब सम्राट को रोकने वाला कोई नहीं था। अब तो वहां अच्छी खासी तादाद में न्यूज़ चैनल वाले भी पहुंच गये थे। और चीख चीखकर सुनील कुमार वर्मा के बारे में बहस कर रहे थे कि वह असली ईश्वर है या नक़ली। इन चैनलों के ज़रिये इस भगवान को पूरे देश में देखा जा रहा था। दूसरी तरफ बन्दर बना असली सुनील कुमार वर्मा यानि सनी अपने दाँत पीस रहा था और मन ही मन सम्राट को सबक सिखाने की तरकीबें सोच रहा था। सम्राट का ध्यान इस समय उसकी तरफ नहीं था। जल्दी ही सनी को उसे सबक सिखाने की तरकीब सूझ गयी। इस समय एक धूपबत्ती उसकी बगल में ही जल रही थी। उसने धीरे से उस धूपबत्ती को सम्राट की तरफ खिसकाना शुरू कर दिया।

सम्राट इस समय उपदेश देने में तल्लीन था। उसने सनी की हरकत की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उसे वैसे भी सनी की कोई चिन्ता नहीं थी। भला बन्दर के जिस्म में मौजूद सनी उसका बिगाड़ ही क्या सकता था।

अचानक सनी ने झपटकर जलती हुई धूपबत्ती सम्राट के पिछवाड़े लगा दी। दूसरे ही पल एक चीख मारकर सम्राट उछल पड़ा। उसने हैरत और गुस्से से बन्दर बने सनी की ओर देखा। पहली बार किसी ने उसे इस धरती पर चोट पहुंचायी थी।

‘‘ओह। तो तुम्हें भी अब सबक देने की ज़रूरत है।’’ उसने दाँत पीसकर कहा। उधर पूरी पब्लिक हैरत से दोनों की ओर देख रही थी। उन्होंने साफ साफ देखा था कि एक बन्दर ने उनके भगवान को चीख मारने पर मजबूर कर दिया है।

‘‘भगवान, आपका बन्दर तो बड़ा नटखट है।’’ एक भक्त ने प्यार से भगवान के बन्दर की ओर देखा।

‘‘हाँ। ये मुझे बहुत प्रिय है।’’ सम्राट ने ऊपरी तौर पर मुस्कुराहट सजाकर किन्तु भीतर ही भीतर पेचो ताब खाते हुए कहा।

‘‘अच्छा। अब यह सभा यहीं बर्खास्त की जाती है। मुझे अब ध्यान में लीन होना है।’’ सम्राट ने उठते हुए कहा।

‘‘किन्तु ईश्वर तो आप स्वयं हैं। फिर आप किसके ध्यान में लीन होंगे?’’ एक भक्त ने जो कुछ ज्यादा ही खुराफाती दिमाग का था, सम्राट को टोक दिया।

‘‘मैं स्वयं के ध्यान में लीन होऊंगा। मैं ईश्वर हूं, जिसकी सीमाएं अनन्त हैं। उस अनन्त के बोध हेतु ध्यान की ऊर्जा अति आवश्यक है ताकि मैं अनन्त सृजन कर सकूं।’’ सम्राट ने इस बार कठिन आध्यात्मिक भाषा का इस्तेमाल किया था, जिसने भक्तों को भाव विह्वल कर दिया। उधर सम्राट ने बन्दर बने सनी को पकड़ा और हवा में तैरते हुए एक तरफ को निकल गया।

नीचे पब्लिक खड़ी हुई भगवान सुनील कुमार वर्मा की जय जयकार कर रही थी।

अपने यान में सम्राट अपने साथियों के साथ मौजूद था। थोड़ी दूरी पर असली सनी भी दिखाई दे रहा था जिसका बन्दर का जिस्म हरे रंग की किरणों के घेरे में था।

‘‘हम काफी हद तक अपने मकसद में कामयाब हो चुके हैं। बहुत जल्द पूरी दुनिया में हमारी पूजा शुरू हो जायेगी। हालांकि कुछ टेढ़े दिमाग वाले अभी भी हमारे रास्ते में टाँग अड़ाने की कोशिश कर रहे हें, लेकिन उनकी औकात कीड़े मकोड़ों से ज़्यादा नहीं।’’ सम्राट अपने साथियों से कह रहा था।

‘‘एक बार पूरी दुनिया के दिमागों पर हमारा कब्ज़ा हो जाये। फिर इस धरती पर हमारी हुकूमत होगी।’’ रोमियो ने खुश होकर कहा।

‘‘हां। यहाँ के लोग हमारे गुलाम होंगे। जो लोग अभी इस ज़मीन पर पहले दर्जे पर क़ाबिज़ है, वह अब दूसरे दर्जे पर आ जायेंगे। हमेशा के लिये। लेकिन शायद उनके दिमाग में विद्रोह की भावना हमेशा रहेगी।’’ सम्राट ने कुछ सोचते हुए कहा।

‘‘ऐसा क्यों सम्राट?’’ सिलवासा ने चौंक कर पूछा।

‘‘क्योंकि इन लोगों ने हमेशा ही पृथ्वी पर शासन किया है। अब इस बन्दर को ही देख लो। उस लड़के का दिमाग इस बन्दर के जिस्म में आने के बाद भी अपनी हार कुबूल नहीं कर रहा है। कुछ देर पहले इसने मुझे परेशान कर दिया था।‘‘

‘‘तो फिर इसका पत्ता साफ कर देते हैं।’’ डोव ने क्रूरता के साथ कहा।

‘‘नहीं। हमें यहाँ मौजूद हर इंसान के दिमाग से अपने लिये विद्रोह की भावना निकालनी है। उनसे अपनी पूजा करानी है।’’

‘‘लेकिन कैसे?’’ सिलवासा ने पूछा।

‘‘उसके लिये हमें कुछ तजुर्बे करने होंगे। और इसके लिये यह बन्दर बना सनी काम आयेगा।’’

‘‘आप कैसा तजुर्बा करना चाहते हैं सम्राट?’’ सिलवासा ने पूछा।

‘‘मैं देखना चाहता हूं कि कोई इंसान कितनी बेबसी के हालात से गुज़रने के बाद हमारा गुलाम बन सकता है। अतः तुम लोग इसे ‘एम-स्पेस’ में भेज दो।’’ सम्राट की बात सुनकर वहां मौजूद सभी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गयी।

‘‘एम-स्पेस। वो तो मैथेमैटिकल समीकरणों का ऐसा चक्रव्यूह है, जहां से निकलना लगभग नामुमकिन है। वहां पर तो ये नाचता रह जायेगा।’’ सिलवासा ने गहरी साँस लेकर कहा।

‘‘लेकिन मुझे एक डर है।’’ बहुत देर से खामोश मैडम वान ने अपनी ज़बान खोली।

‘‘शायद तुम ये कहना चाहती हो कि अगर किसी ने एम-स्पेस पार कर लिया तो वह हमें हमेशा के लिये अपने कण्ट्रोल में कर लेगा’’ सम्राट ने कहा।

मैडम वान ने सर हिलाया, ‘‘जी हाँ। क्योंकि एम स्पेस हमारा कण्ट्रोल रूम भी है। और उसी के द्वारा हमें अपने ग्रह से शक्तियां मिलती हैं।’’

‘‘यह नामुमकिन है कि पृथ्वी का कोई दिमाग एम-स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझ ले। और ये बच्चा तो बिल्कुल ही नहीं समझ सकेगा। क्योंकि मैं इसकी पूरी हिस्ट्री से वाकिफ हूं। गणित तो इसके लिये हमेशा एक हव्वे की तरह रही है। और बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता।’’

‘‘तो फिर ठीक है। हम इसे एम-स्पेस में डाल देते हैं।’’ कहते हुए मैडम वान ने डोव को इशारा किया और डोव जो कि यान के स्विच बोर्ड के पास था, उसने एक स्विच दबा दिया। दूसरे ही पल यान में उस जगह का फर्श गोलाई में हट गया जहाँ पर बन्दर बना सनी मौजूद था। एक क्षण के अन्दर सनी का जिस्म उस रिक्त स्थान में गायब हो चुका था।

क्रमशः

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