राष्ट्र भाषा का महत्त्व.

राष्ट्र भाषा का महत्त्व.

बाइबिल में एक प्रेरणास्पद कहानी आती हैं। किसी नगर के एक राजा ने अपनी राजधानी में एक सुंदर मीनार बनवाने का निश्चय किया। उसकी यह इच्छा थी कि मीनार पर भले ही काहे जितना भी धन खर्च हो जाये, किन्तु वह ऐसी शानदार बने कि उसकी चर्चा सारी दुनियां में हो। उसे देखने के लिये विदेशो तक से लोग आये। राजा को स्थानीय कारीगिरों से यह उम्मीद नहीं थी कि वे ऐसी उम्दा मीनार बना पायेगे। इसलिए उसने अलग अलग देशों से उत्कृष्ट कारीगरों को बुलाया गया। जब वे सभी आ गये तो राजा ने एक दिन मीनार का भूभी-पूजन करवाया।

अगले दिन से काम शुरू हुआ, लेकिन शीघ्र ही एक बहुत बड़ी कठिनाई आ गई। बाहर से आये कारीगर अलग अलग देशों के थे, इसलिए वे एक दूसरे की भाषा नहीं समझते थ। परिणाम यह हुआ की कारीगर जब ईट मांगता, तो मजदूर मसाला देता था और कारीगर जब मसाला मांगता, तब मजदूर ईट पंहुचा देता था। ऐसा काफी समय तक चलते रहा।

राजा भी इस बात से बहुत परेशान हुआ। इस असामंजस्य के कारण मीनार नहीं बन सकी और राजा ने सभी कारीगरों को धन्यवाद सहित उनके देश लौटा दिया। बाइबिल की यह कहानी प्रतीकात्मक हैं। संकेत यह हैं कि जब भाषा के आभाव में एक मीनार नहीं बन सकी, तो बिना राष्टभाषा के किसी राष्ट्र का निर्माण कैसे संभव हैं? हम सभी को इस तथ्य को समझ लेना चहिये कि राष्ट्र भाषा किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होती हैं।

इसलिए हिंदी के अधिकाधिक उपयोग के द्वारा हमें भारत को एकता की डोर में बाधकर उसके विकास को सुनिचित करना चाहिए। आज विभिन्न राज्यों में भिन्न भिन्न भाषाए बोलो जाती हैं, जोकि स्थानीय भाषा कहलाती हैं; किन्तु हिंदी भाषा भारत के हर राज्य में समझी जाने वाली एकमात्र भाषा हैं।

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