मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-26
भाग-25 से लगातार.... उसने दीवार के सबसे पास वाले फानूस पर नज़रें गड़ायीं। जो कि धीरे धीरे खिसकती दीवार के पास हो रहा था। जैसे ही दीवार उस फानूस के पास पहुंची, फानूस इस तरह हवा में विलीन हो गया जैसे वहाँ था ही नहीं। सुनील कुमार ने एक गहरी साँस ली। लटकते फानूस भी कोई क्लू देने से लाचार ही सिध्द हुए थे।
लेकिन नहीं। क्लू तो मौजूद था। सभी फानूस छत में इस तरह लगे हुए थे कि उनसे एक के भीतर एक कई वर्ग बन रहे थे। उसने दीवारों की तरफ देखा। हर दीवार आयताकार थी जबकि फर्श व छत वर्गाकार। उसने जब आगे गौर किया तो एक बात और समझ में आयी। चारों दीवारों के क्षेत्रफल को अगर जोड़ दिया जाता तो यह जोड़ फिलहाल फर्श के क्षेत्रफल से ज़्यादा ही निकल कर आता। लेकिन जिस तरह दीवारें सिमट रही थीं, बहुत जल्द ये क्षेत्रफल फर्श के बराबर हो जाना था।
फिर उसने मन ही मन गणना करनी शुरू की। और जल्द ही उसे वह स्पाट मिल गया जहाँ पर अगर दीवार पहुंच जाती तो दीवारों का कुल क्षेत्रफल फर्श के क्षेत्रफल के बराबर हो जाता। उसने सर उठाकर छत की तरफ देखा तो वहाँ के फानूस उसे बाकी फानूसों से रंग व रूप में अलग नज़र आये। जहाँ सारे फानूसों में सुर्खी लिये हुए गहरा पीलापन झलक रहा था, वहीं इन फानूसों में हरापन था। इसका मतलब कि इन फानूसों में ही दीवार रोकने का और इस मुसीबत से बाहर निकलने का राज़ था। लेकिन वह राज़ क्या था?
इस बारे में सनी को कोई आईडिया नहीं था। फिर उसकी नज़र अपने हाथ पर गयी जिसमें ज़हरीले साँपों व कीड़े मकोड़ों को मारने वाला गोल ज़ीरोनुमा हथियार अब भी मौजूद था। उसने एक दाँव फिर खेलने का निश्चय किया और उस ज़ीरोनुमा हथियार को हरे फानूस की तरफ उछाल दिया। जैसे ही उसका हथियार फानूस से टकराया वह फानूस हलकी चमक के साथ ग़ायब हो गया। इसका मतलब उसका ज़ीरोनुमा हथियार किसी भी चीज़ का अस्तित्व मिटा सकता था।
उसने यह क्रिया सारे हरे फानूसों के साथ की और थोड़ी ही देर में वह सब फानूस ग़ायब हो चुके थे, और उनकी जगह पर सपाट वर्ग बन चुका था। अब उसने दीवार की तरफ नज़र की। लेकिन यह देखकर उसका दिल डूबने लगा कि दीवारें अभी भी उसकी तरफ खिसक रही थीं।
‘हो सकता है यह ज़ीरो दीवारों का अस्तित्व भी मिटा दे।’ ऐसा सोचकर वह एक दीवार के पास पहुंचा और ज़ीरो को उससे टच करा दिया। लेकिन दीवार पर कोई भी असर नहीं हुआ। गहरी निराशा से उसका दिल भर गया। यानि अब उसका अंतिम समय आ चुका था। वह जाकर चुपचाप हॉल के बीचोंबीच लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। हो सकता है सोते में मौत का एहसास ही न हो। लेकिन जब दिमाग में अफरातफरी मची हो तो कैसी नींद - कहाँ की नींद?
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें