मायावी गिनतियां. (रोचक कथा) (जीशान जैदी) भाग-31


मायावी गिनतियां.  (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-31
भाग-30 से लगातार....

मतलब ये कि साठ सेंकड अर्थात हर एक मिनट के बाद सभी टीवी स्क्रीनें एक साथ बन्द हो जाती थीं। उसने एक बार फिर टीवी स्क्रीनों पर दृष्टि केन्द्रित कर दी। उसे ये देखना था कि जब सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द होती हैं तो उसके बाद उनपर कौन से दृश्य सबसे पहले आते हैं।

उसे ज़्यादा इंतिज़ार नहीं करना पड़ा। जल्दी ही सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द हुईं और एक सेंकंड बाद फिर चालू हो गयीं। और उनके चालू होने के बाद जो पहला दृश्य आया वह सनी के लिये आशाजनक साबित हुआ।

क्योंकि वह दृश्य उसी कमरे के एक भाग का था। सभी स्क्रीनें एक ही दृश्य दिखा रही थीं और वह दृश्य कमरे में मौजूद मेज़ के एक पाये का था। यह पाया मेज़ पर रखे सिर के पीछे की ओर दायीं तरफ था। सभी स्क्रीनें उस पाये के निचले हिस्से को दिखा रही थीं।

लगभग एक सेकंड तक वह पाया दिखाई दिया फिर सभी स्क्रीनों के दृश्य बदल गये। सनी के लिये इतना इशारा काफी था। वह उस पाये के पास आया और उसका व उसके आसपास का गौर से निरीक्षण करने लगा। जल्दी ही उसे पाये से टच करता हुआ, वह पत्थर नज़र आ गया, जिसका रंग दूसरे पत्थरों से हल्का सा अलग था। जहाँ दूसरे पत्थर गुलाबी रंग के थे, वहीं इस पत्थर के गुलाबीपन में बैंगनी रंग की भी झलक मिल रही थी। हालांकि यह झलक इतनी नहीं थी कि कोई आसानी से उसे नोटिस कर सकता।

उसने पाये को उस पत्थर से हटाने की कोशिश की, लेकिन पाया पूरी तरह जाम था। उसने पत्थर को भी ठोंक बजाकर देखा, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर उसे अपने हाथ में पकड़े ज़ीरो नुमा यन्त्र का ख्याल आया, जिसने इससे पहले भी उसकी कई बार मदद की थी। उसने उस यन्त्र को पत्थर से लगा दिया।

परिणाम इस बार पाज़िटिव था। जैसे ही पत्थर यन्त्र के सम्पर्क में आया, शूँ की आवाज़ के साथ वह हवा में विलीन हो गया। और उसके गायब होते ही उससे मिले सारे पत्थर एक एक करके गायब होने लगे। मज़े की बात ये थी कि एक तरफ तो फर्श के पत्थर गायब हो रहे थे और दूसरी तरफ वह मेज़ जिसपर कटा सिर रखा था, वह हवा में धीरे धीरे ऊपर उठती छत की ओर जा रहा था।

फिर वह पत्थर भी गायब हो गया, जिसके ऊपर सनी खड़ा था। अब क़ायदे से उसे नीचे बने हुए गड्ढे में गिर जाना चाहिए था लेकिन वह वहीं हवा में टिका रहा। उसे लग रहा था कि इस जगह का गुरुत्व पूरी तरह खत्म हो गया है। वह अब किसी नयी मुसीबत के लिये अपने को तैयार कर रहा था जो कि शायद ज़्यादा ही मुश्किल थी, जैसा कि उस सिर ने बताया था।

सिर जिस मेज़ पर रखा था, वह मेज़ छत को फाड़कर बाहर निकल चुकी थी, और उसके बाद छत फिर से बराबर हो गयी थी। अचानक उसे अपने पैरों पर नमी सी महसूस हुई। उसने झुककर देखा तो उसे अपने पैरों के पास छोटे छोटे गुलाबी रंग के बादल नज़र आये, जो धीरे धीरे घने हो रहे थे। साथ ही यह बादल उसके पैरों से ऊपर भी उठकर पूरे कमरे में फैल रहे थे।

क्रमशः

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