मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-23
भाग-22 से लगातार.... उसने बेबसी से फर्श की तरफ देखा, जहाँ बहुत से साँप बिच्छू उसके ठीक नीचे मुंह फैलाकर खड़े हो गये थे और उसके टपकने का इंतिज़ार कर रहे थे। उसने जल्दी से फर्श पर से नज़रें हटा लीं और दीवार की ओर देखने लगा। लेकिन दीवार के नज़ारे ने उसकी हालत और खराब कर दी। उसपर इस डरावनी हक़ीकत का इज़हार हुआ कि वहाँ कुछ ऐसे कीड़े व साँप भी मौजूद थे, जो दीवार पर चढ़ सकते थे। और वे आफतें दीवार पर चढ़कर लगभग छत तक पहुंचने वाली थीं और उसके बाद उस फानूस तक जिससे वह लटका हुआ था।
यानि बचने का कोई रास्ता नहीं था। हाँ मरने के उसके पास दो रास्ते थे। या तो वह फानूस को छोड़ देता। ऐसी दशा में नीचे की कीड़े मकोड़े फौरन ही उससे चिमटकर उसका काम तमाम कर डालते, या फिर वह उन कीड़ों का इंतिज़ार करता जो छत से रेंगकर, उसके पास आने वाले थे।
‘क्या यहाँ भी बचने का कोई गणितीय फार्मूला मौजूद है?’ उसके दिमाग़ में ये विचार पैदा हुआ। और इस विचार के साथ ही उसके दिल में उम्मीद की किरण फिर पैदा हो गयी। वह हाल में चारों तरफ नज़रें दौड़ाने लगा और गौर से एक एक चीज़ को देखने लगा। फिर उसकी नज़र छत से लटकते एक छल्ले पर जम गयी।
वैसे तो हाल की छत से बहुत से फानूस लटक रहे थे। और उनका लटकना कोई हैरत की बात नहीं थी। लेकिन उन फानूसों के बीच में एक छल्ले का लटकना ज़रूर अजीब था। फिर उसने फर्श पर रेंगते कीड़ों और साँप बिच्छुओं को भी जब गौर से देखा तो उसे उनमें एक खास बात नज़र आयी।
वह सभी कीड़े मकोड़े साँप व बिच्छू रेंगते हुए किसी न किसी गणितीय अंक के आकार को बना रहे थे। मसलन एक साँप इस तरह टेढ़ा होकर रेंग रहा था कि उससे 5 का अंक बन रहा था। कुछ बिच्छू इस तरह सिमटे थे कि उनसे 3 का अंक बना दिखाई दे रहा था। एक कीड़ा 8 के अंक के आकार में था तो दूसरा 9 के अंक के आकार में। जब ये कीड़े एक दूसरे के समान्तर रेंगते थे तो उनसे बनी संख्याएं भी साफ दिख जाती थीं। फर्श पर कहीं 1512 संख्या रेंगती हुई दिख रही थी तो कहीं 5234। कहीं कहीं तो पन्द्रह बीस अंकों की बड़ी संख्याएं भी दिख रही थीं।
क्रमशः
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