मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-51
भाग-50 से लगातार.... ‘‘क्या?’’ सनी ने हैरत से कहा, ‘‘लेकिन कुछ लोगों को मैंने अपनी आँखों से मरते हुए देखा है। जैसे कि फल खाकर मरने वाला वह बन्दर या वह फरिश्ता जिसने मुझे कण्ट्रोल रूम तक पहुंचाया।’’
‘‘वह लोग तुम्हारी आँखों के सामने मरे थे, लेकिन वास्तव में वह एम-स्पेस के किसी और यूनिवर्स में पहुंचकर जिंदा हैं। और किसी और रूप में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। एम-स्पेस में इसी तरह चीज़ें किसी और यूनिवर्स में पहुंचकर अपना रूप बदल लेती हैं। इसी तरह मैं इन लोगों को भी एक काम्प्लेक्स यूनिवर्स में भेजने वाला हूं, जहाँ इनका अस्तित्व केवल आभासी रूप में होगा। यानि ये यूनिवर्स की घटनाओं का केवल एक हिस्सा होंगे लेकिन उन घटनाओं पर इनका कोई नियन्त्रण नहीं होगा।’’
‘‘नहीं प्लीज़ हमें ऐसा जगह न भेजिए जहाँ हम केवल कठपुतली बनकर रह जायें।’’ सम्राट हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया।
‘‘मैं समझता हूं कि तुम लोगों ने जो जुर्म किया है, उसकी ये सज़ा भी कम है। लेकिन उससे पहले तुम्हें ये शरीर इस लड़के को वापस देना होगा।’’ कहते हुए बूढ़ा उस छोटी मशीन के पास पहुंचा, जिसमें बेशुमार कीलें लगी हुई थीं। उसने उनमें से पन्द्रह बीस कीलें तेज़ी के साथ दबा दीं। इसी के साथ सनी को अपना सिर चकराता हुआ महसूस हुआ। और फिर उसे कुछ होश नहीं रहा।
सनी को जब दोबारा होश आया तो उसने अपने को किसी आरामदायक बिस्तर पर पाया। उसने अपनी आँखें मलीं और उठकर बैठ गया। उसे ये जगह जानी पहचानी लग रही थी। फिर उसे ध्यान आया, ये तो उसका ही कमरा था, जहाँ पर आराम करने के लिये वह तरस गया था। अचानक उसकी नज़र अपने हाथों की तरफ गयी और उसने हर्षमिश्रित आश्चर्य से देखा कि उसकी शरीर अब बंदर का नहीं रहा था। बल्कि उसे उसका मानवीय शरीर वापस मिल गया था। यानि उस बूढ़े ने अपना वादा पूरा कर दिया था।
लेकिन वह बूढ़ा कहाँ है? और वह कण्ट्रोल रूम? उसने बिस्तर से नीचे की तरफ छलांग लगा दी। उसी समय उसे अपने सिरहाने रखा हुआ एक पर्चा नज़र आया। उसने उसे उठाया और पढ़ने लगा। उस पर्चे में बूढ़े ने उसे मुखातिब किया था।
‘सनी बेटे जब तुम जागने के बाद ये पर्चा पढ़ रहे होगे, उस समय मैं तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर जा चुका हूंगा। अब तुम वही पुराने सनी बन चुके हो। लेकिन साथ में मैंने तुम्हारे दिमाग में थोड़ी सी पावर भी भर दी है। अब तुम्हें गणित और साइंस का कोई फार्मूला परेशान नहीं करेगा। कभी कभी हम लोग सपनों के द्वारा मिला करेंगे। अगर कभी भी तुम्हें मेरी ज़रूरत महसूस हो तो आँखें बन्द करके मन में कहना - एम-स्पेस के क्रियेटर मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। मैं तुमसे अवश्य सम्पर्क करूंगा। शुभ प्रभात।
सनी के फेफड़ों से एक गहरी साँस खारिज हुई और उसने पर्चे को दोबारा पढ़ने के लिये उसकी ओर नज़र की। लेकिन ये क्या? पर्चे पर लिखी तहरीर गायब हो चुकी थी। उसने उलट पलट कर देखा। पर्चा पूरी तरह कोरा था। उसी समय कोई ज़ोर ज़ोर से उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाने लगा। और साथ में उसके पापा की आवाज़ सुनाई दी, ‘‘सनी बेटा! दरवाज़ा खोलो जल्दी।’’
उसने जल्दी से आगे बढ़कर दरवाज़ा खोल दिया। सामने उसके पापा मौजूद थे, ‘‘सनी बेटे तुमने हमें किस मुसीबत में फंसा दिया। सवेरे सवेरे दरवाज़े पर भीड़ इकट्ठा हो चुकी है। सब तुम्हारे दर्शन करना चाहते हैं।’’
‘‘आप चिंता मत कीजिए पापा। अभी सब ठीक हो जायेगा।’’ कहते हुए सनी दरवाज़े की ओर बढ़ा।
दरवाज़ा खोलते ही उसे अपनी कालोनी वालों के साथ ही आसपास की कालोनयों के भी काफी लोग दिखाई पड़े। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला सब उसके सामने नतमस्तक हो गये और उसकी जयजयकार करने लगे।
‘‘नहीं। ये गलत है। मैं न तो भगवान हूं और न ही कोई दैवी शक्ति। मैं तो बस एक मामूली इंसान हूं।’’ उसने चीख कर कहा।
ये सुनते ही पूरे मजमे पर सन्नाटा छा गया।
‘‘ये आप क्या कह रहे हैं? हम तो अब आप को भगवान ईश्वर सब कुछ मान बैठे हैं।’’ सबसे आगे मौजूद मलखान सिंह जी हकलाते हुए बोले।
‘‘हाँ हाँ। आप ही ने तो यह रहस्य हम पर खोला था कि आप भगवान हैं।’’ पंडित बी.एन.शर्मा हाथ जोड़कर बोले।
‘‘हाँ मैंने ये कहा था। लेकिन उस समय मैं अपने होश में नहीं था। दरअसल बहुत ज़्यादा गणित पढ़ने के कारण मेरा दिमाग उलट गया था। और मैं उल्टा सीधा बकने लगा था। लेकिन अब मैं ठीक हूं।’’
‘‘आप कैसे ठीक हुए भगवान?’’ पंडित बी.एन.शर्मा ने फिर हाथ जोड़कर पूछा।
‘‘मैंने अपने को अनुभव किया। एकांत में जाकर अपने बारे में सोचा। तब मुझे मालूम हुआ कि मैं बस मामूली इंसान हूं। इतना ज़रूर है कि अब मैं गणित में मामूली नहीं रहा। मैंने अपनी मेहनत से उसपर अधिकार स्थापित कर लिया है। और अब कोई मुझे घोंघाबसंत कहकर नहीं बुला सकता। आप लोग प्लीज़ अपने घरों को वापस जायें और जिन भगवानों की या अल्लाह की पूजा इबादत करते हैं, उन ही की करते रहिए।’’ उसकी बात सुनकर मजमा धीरे धीरे तितर बितर होने लगा। और कुछ ही देर में वहाँ पर थोड़े से लोग बाकी रह गये थे।
सनी ने देखा कि उनमें अगवाल सर भी मौजूद हैं।
‘‘सर, आप?’’
क्रमशः
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