मायावी गिनतियां. (रोचक कथा) (जीशान जैदी) भाग-39


मायावी गिनतियां.  (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-39
भाग-38 से लगातार....

उसने देखा राक्षस के जिस्म से निकलने वाली रोशनियों ने पूरे कमरे को जगमगा दिया था और अब वह राक्षस भी नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके सिर का सींग गायब हो गया था और चेहरा निहायत खूबसूरत हो गया था। लेकिन उसका जिस्म अभी भी मानव का जिस्म नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके पूरे धड़ में तरह तरह के रंगों की रोशनियां, इस तरह लहरा रही थीं मानो बादलों में बिजलियां चमक रही हैं।

‘‘अरे वाह। तुम तो अब खूबसूरत हो गये। फिर तुमने मेरा ज़ीरो बाहर ही क्यों नहीं माँग लिया था?’’ सनी ने खुश होकर पूछा।

‘‘मैं उसे बाहर नहीं माँग सकता था। इसके दो कारण थे। पहला तो ये कि वहाँ मेरे माँगने पर तुम उसे देते ही नहीं।’’

सनी ने दिल में सोचा, ‘‘यह ठीक कह रहा है। यकीनन अगर वहाँ पर कोई भी उससे उसका यन्त्र माँगता तो वह हरगिज़ उसे नहीं देता।’’

‘‘और दूसरा कारण?’’ उसने पूछा।

‘‘दूसरा कारण ये था कि अगर मैं उस ज़ीरो को बाहर ले लेता तो इस क्यूबिक समीकरण रूपी दरवाज़े को खोलना मुमकिन न होता। क्योंकि ज़ीरो ग्रहण करने के बाद मेरा मान ‘वन’ नहीं रह जाता।’’

‘‘ठीक है। मैं समझ गया। अब तुम आगे क्या करने जा रहे हो?’’

‘‘अब हम अपनी मंज़िल की ओर बढ़ने जा रहे हैं।’’ कहते हुए उसने एक छलांग लगायी और कमरे की छत से चिपक गया। उसके छत से चिपकते ही कमरा हवा में ऊपर उठने लगा। थोड़ी ऊंचाई पर जाकर कमरा एक दिशा में तेज़ी से आगे की तरफ उड़ने लगा था। ऐसा मालूम हो रहा था कि कमरे को वह राक्षस अपने ज़ोर से हवा में उड़ा रहा है। वैसे अब उसे राक्षस कहना मुनासिब नहीं था। बल्कि वह तो कोई फरिश्ता मालूम हो रहा था।

क्रमशः

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