मायावी गिनतियां. (रोचक कथा)
(जीशान जैदी)
भाग-३
भाग-२ से लगातार...
सनी जब क्लास में दाखिल हुआ तो आगे बैठे हुए सभी लड़के ठहाका मारकर हंस दिये। उन्हें पिछले दिन अग्रवाल सर को दिये जवाब और फिर उसकी शामत की याद आ गयी थी।
‘‘लो आ गया गणित का डब्बा।’’ अमित बोला। वह अग्रवाल सर का चहेता स्टूडेन्ट था।
‘‘इसके दिमाग का डब्बा तो हमेशा गोल रहेगा। पता नहीं किसने इसे हम लोगों के बीच बिठा दिया।’’ गगन मुंह बिचकाते हुए बोला।
सनी बिना किसी से बात किये चुपचाप पीछे की सीट पर जाकर बैठ गया।
जल्दी ही अग्रवाल सर का पीरियड भी शुरू हो गया। अंदर दाखिल होते ही उनकी पहली दृष्टि सनी पर गयी।
‘‘सनी! कल छुट्टी के बाद तुम कहां गायब हो गये थे?’’
‘‘मैं टहलने गया था जंगल तक।’’ संक्षिप्त जवाब दिया सनी के रूप में सम्राट ने।
‘‘अपने रिश्तेदारों से मिलने गया होगा, वहाँ ये।’’ एक महीन सी आवाज उभरी और पूरी क्लास ठहाकों से गूंज उठी।
अग्रवाल सर ने सबको शान्त किया और पढ़ाना शुरू किया, ‘‘आज मैं त्रिभुजों के कुछ गुण बताता हूँ। तीन भुजाओं से मिलने वाली ये आकृति त्रिभुज कहलाती है।’’ ब्लैक बोर्ड पर चाक से अग्रवाल सर ने त्रिभुज की आकृति खींची, ‘‘गगन, तुम बताओ, त्रिभुज के तीनों कोणों का योग कितना होता है?’’
‘‘सर, एक सौ अस्सी डिग्री।’’ गगन ने फौरन जवाब दिया।
‘‘गुड। सुनील कुमार, तुम खड़े हो और बताओ समबाहू त्रिभुज क्या होता है?’’ अग्रवाल सर किसी से पूछें या न पूछें सनी से जरूर पूछते थे।
सनी खड़ा हुआ, ‘‘सर, पहले मैं गगन के जवाब में कुछ जोड़ना चाहता हूं। त्रिभूज के तीनों कोणों का योग हमेशा एक सौ अस्सी डिग्री नहीं होता। यह निर्भर करता है, उस सतह पर जहां वह त्रिभुज बना हुआ है। अगर वह सतह यूक्लीडियन प्लेन है, तब तो कोणों का योग एक सौ अस्सी डिग्री होगा, वरना कम या ज्यादा भी हो सकता है। मिसाल के तौर पर त्रिभुज किसी घड़े जैसी सतह पर बना है, तो कोणों का योग एक सौ अस्सी डिग्री से ज्यादा होगा। और अब मैं आता हूं आपके सवाल पर.........।’’ अग्रवाल सर ने उसे हाथ के इशारे से रुकने के लिए कहा और खुद अपने सर को थामकर कुर्सी पर बैठ गये।
पूरी क्लास अवाक होकर राम को देख रही थी।
‘‘यह सब तुमने कहाँ पढ़ा?’’ अग्रवाल सर ने अपनी साँसों को संभालते हुए पूछा।
‘‘यह तो कामनसेन्स है सर।’’ सनी के जवाब ने गगन और अमित के साथ अग्रवाल सर को भी सुलगा दिया।
‘‘सर आज्ञा दें तो मैं सनी के कामनसेन्स का टेस्ट लेना चाहता हूं।’’ गगन अपनी सीट से उठा। अग्रवाल सर ने बिना कुछ कहे सर हिलाया।
‘‘बताओ एक से सौ तक की संख्याओं का योग कितना होता है?’’ गगन ने पूछा। उसे मालूम था कि जिस फार्मूले को उसके भाई ने बताया है, जोड़ निकालने के लिए, वह सनी को हरगिज नहीं पता होगा।
‘‘पाँच हजार पचास!’’ जितनी तेजी से सनी ने जवाब दिया, उससे यही लगा किसी ने उसके दिमाग में कम्प्यूटर फिट कर दिया है।
सनी यही बताकर चुप नहीं हुआ, ‘‘मैंने यह कैलकुलेशन फार्मूले के आधार पर की है। जहां तक की संख्याओं को जोड़ना है, उससे एक आगे की संख्या लेकर, उस संख्या से गुणा करो और फिर दो से भाग दे दो। रिजल्ट मिल जायेगा। वास्तव में यह समान्तर श्रेणी का एक स्पेशल केस होता है। यह श्रेणी अलजेब्रा की एक कॉमन श्रेणी है। अन्य प्रचलित श्रेणियां हैं, गुणोत्तर, हरात्मक तथा चरघातांकी।’’
उसने खामोश होकर इधर उधर देखा। सारे बच्चों के साथ अग्रवाल सर का भी मुंह भाड़ जैसा खुला हुआ था। उन्हें इसका भी एहसास नहीं था कि एक मक्खी लगातार उनके खुले मुंह से अन्दर बाहर हो रही है।
‘‘हैलो सनी।’’ सनी ने घूमकर देखा, उसी के क्लास की स्टूडेन्ट नेहा उसे पुकार रही थी।
‘‘क्या बात है नेहा?’’
‘‘आज तो तुमने सबकी बजा दी। क्या जवाब दिये।’’
‘‘शुक्रिया।’’ सपाट चेहरे के साथ कहा सनी ने।
‘‘क्या बात है? आज तो तुम बदले बदले दिखाई दे रहे हो।’’ नेहा ने गौर से उसकी ओर देखा।
‘‘मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ।’’ गड़बड़ा कर सनी बने सम्राट ने कहा।
‘‘चलो कैंटीन चलकर चाउमीन खाते हैं।’’ नेहा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
‘‘चलो।’’दोनों कैंटीन की तरफ बढ़ गये।
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें